नयी दिल्ली, 20 मार्च (भाषा) केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि विदेशियों को शरणार्थी के रूप में ‘‘सभी मामलों में स्वीकृति’’ नहीं दी जा सकती है, विशेष रूप से तब, जब ऐसे ज्यादातर लोग अवैध रूप से देश में घुस चुके हैं।
केंद्र ने दावा किया कि रोहिंग्या के लगातार अवैध प्रवास से राष्ट्रीय सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं।
उच्चतम न्यायालय में दायर एक हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि भारत ने 1951 के शरणार्थी दर्जे के संबंध में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी समझौते पर या शरणार्थियों की स्थिति से संबंधित प्रोटोकॉल, 1967 पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं और इस प्रकार, किसी भी वर्ग के व्यक्तियों को शरणार्थी के रूप में मान्यता दी जानी है या नहीं, यह एक ‘‘शुद्ध नीतिगत निर्णय’’ है।
हलफनामा उस याचिका के संबंध में दायर किया गया है, जिसमें केंद्र को उन रोहिंग्याओं को रिहा करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है, जिन्हें जेलों या हिरासत केंद्रों या किशोर गृहों में बिना कोई कारण बताए या विदेशी अधिनियम के प्रावधानों के कथित उल्लंघन के लिए हिरासत में लिया गया है।
इसमें कहा गया है, ‘‘दुनिया की सबसे बड़ी आबादी और सीमित संसाधनों वाले विकासशील देश के रूप में, देश के अपने नागरिकों को प्राथमिकता देना आवश्यक है। इसलिए, विदेशियों को शरणार्थी के रूप में पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया जा सकता है, खासकर ऐसी स्थिति में जब ज्यादातर विदेशियों ने अवैध रूप से देश में प्रवेश किया है।’’
उच्चतम न्यायालय के 2005 के एक फैसले का हवाला देते हुए हलफनामे में कहा गया है कि इसमें अनियंत्रित आव्रजन के खतरों को दर्शाया गया है।
इसमें कहा गया है, ‘‘रोहिंग्याओं का भारत में रहना पूरी तरह से अवैध होने के अलावा, राष्ट्रीय सुरक्षा के संबंध में गंभीर खतरा पैदा करता है।’’
भाषा
देवेंद्र माधव
माधव
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