दिल्ली सरकार तीसरे पक्ष से पूसा की जैव अपघटक प्रौद्योगिकी का कराना चाहती है ऑडिट | Delhi govt wants third party to conduct audit of Pusa bio-component technology

दिल्ली सरकार तीसरे पक्ष से पूसा की जैव अपघटक प्रौद्योगिकी का कराना चाहती है ऑडिट

दिल्ली सरकार तीसरे पक्ष से पूसा की जैव अपघटक प्रौद्योगिकी का कराना चाहती है ऑडिट

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:12 PM IST, Published Date : July 9, 2021/11:31 am IST

( गौरव सैनी )

नयी दिल्ली, नौ जुलाई (भाषा) फसल कटाई के मौसम से पहले दिल्ली सरकार ने केंद्रीय जल मंत्रालय की एक कंसल्टेंसी फर्म को पत्र लिखकर पूसा जैव अपघटक के इस्तेमाल का ऑडिट करने को कहा है। इसे पिछले साल अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार ने पराली जलाने की समस्या का एक नया किफायती, प्रभावी समाधान बताया था।

दिल्ली पर्यावरण विभाग के अधिकारियों ने पीटीआई-भाषा को बताया कि यह निर्णय पंजाब में किसानों की कुछ ‘‘नकारात्मक’’ टिप्पणियों और तकनीक के उपयोग के बाद हरियाणा से ‘‘सकारात्मक’’ प्रतिक्रिया के बीच किया गया है। इस तकनीक के तहत पराली को नष्ट करने के लिए जैविक खाद छिड़काव का उपयोग किया जाता है। पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पिछले साल कहा था कि पूसा जैव अपघटक को पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के कुछ इलाकों में आजमाया जाएगा और अगर यह तकनीक सफल रहती है तो इसे और क्षेत्रों में विस्तारित किया जाएगा।

कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक एपी सैनी ने बताया, ‘‘हमने डब्ल्यूएपीसीओएस को दिल्ली में पूसा जैव अपघटक का ऑडिट करने के लिए लिखा है। वे पिछले साल अपने खेतों में घोल का छिड़काव करने वाले किसानों से प्रतिक्रिया लेंगे।’’ अधिकारी ने कहा, ‘‘हम पिछले साल इसके प्रभाव को लेकर किए सर्वेक्षण के परिणाम पहले ही जारी कर चुके हैं। अब, हम पूसा जैव अपघटक को किसी तीसरे पक्ष (डब्ल्यूएपीसीओएस) द्वारा अनुमोदित कराना चाहते हैं। ऑडिट अगले सप्ताह शुरू होने की संभावना है।’’

डब्ल्यूएपीसीओएस के केपीएस मलिक ने पुष्टि की कि दिल्ली सरकार ने उनसे ऑडिट करने के लिए संपर्क किया है, लेकिन कहा कि उन्हें ‘‘अब तक औपचारिक रूप से अनुमति मिलना बाकी है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम जल्द ही दिल्ली सरकार के अधिकारियों के साथ बैठक करेंगे और उनसे क्षेत्रवार लाभार्थियों की सूची उपलब्ध कराने को कहेंगे।’’

अधिकारियों ने कहा कि फर्म यह पता लगाने की कोशिश करेगी कि क्या पूसा जैव अपघटक के इस्तेमाल से उन्हें अगली फसल के लिए अपना खेत तैयार करने को लेकर पर्याप्त समय मिला है। किसानों का कहना है कि धान की फसल की कटाई और गेहूं की बुआई के बीच उनके पास 10-15 दिन का बहुत कम समय होता है और इसलिए वे पराली को जला देते हैं क्योंकि यह सस्ता भी होता है और इसमें अगली फसल की बुआई के लिए समय भी बचता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा के वैज्ञानिकों ने पूसा जैव अपघटक का विकास किया है। उनका कहना है कि यह जैव अपघटक 10-15 दिन में फसल को खाद में बदल देता है जिससे पराली को जलाने की स्थिति से बचा सकता है। अक्टूबर-नवंबर के महीने में प्रदूषण का स्तर बढ़ने में पराली जलाना भी एक मुख्य कारण है। पिछले साल एक नवंबर को दिल्ली में पीएम 2.5 से प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी बढ़कर 40 प्रतिशत हो गई थी।

पिछले साल नवंबर में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा था कि भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा द्वारा तैयार किए गए घोल से दिल्ली के 24 गांवों में 70 से 95 प्रतिशत फसल अवशेष सड़ गए। पिछले साल 13 अक्टूबर से गैर-बासमती धान के 2,000 एकड़ खेतों में घोल का मुफ्त छिड़काव किया गया था।

भाषा सुरभि माधव

माधव

 

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