प्रयागराज, 23 मई (भाषा) उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम), बांदा द्वारा दर्ज कराई गई प्राथमिकी को खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यह कृत्य एक मजिस्ट्रेट के लिए अनुचित था।
अदालत ने कहा, ‘‘सीजेएम बांदा ने अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए प्राथमिकी में झूठा, प्रेरित और उद्देश्यपूर्ण आरोप लगाकर एक तरह से अपनी कुर्सी, गरिमा और पद को नीलाम कर दिया। उन्हें सीजेएम के तौर पर अपने पद का इस्तेमाल करते हुए एक साधारण वादी के तौर पर आचरण करने की अनुमति नहीं दी जा सकती।’’
मनोज कुमार गुप्ता और बिजली विभाग के दो अन्य अधिकारियों की याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति मोहम्मद अजहर हुसैन इदरीसी की पीठ ने यह टिप्पणी की।
अदालत ने कहा कि बांदा के सीजेएम भगवान दास गुप्ता ने इन अधिकारियों को ‘‘एक कड़ा सबक सिखाने’’ के लिए और उन्हें ‘‘सीजेएम की ताकत और पद का एहसास कराने’’ के लिए उनके खिलाफ धोखाधड़ी, दस्तावेजों में जालसाजी करने और धन वसूली का झूठा आरोप लगाया।
अदालत ने निर्देश दिया कि भविष्य में यदि कोई भी न्यायिक अधिकारी या न्यायाधीश किसी भी प्राथमिकी में अपनी व्यक्तिगत क्षमता में प्रथम सूचनादाता (शिकायतकर्ता) बनना चाहता है तो उसे संबंधित जिला न्यायाधीश को विश्वास में लेना होगा और जिला न्यायाधीश की सहमति के बाद ही वह हत्या, खुदकुशी, दुष्कर्म या अन्य यौन अपराध जैसे गंभीर मामलों को छोड़कर किसी प्राथमिकी में सूचनादाता बन सकता है।
अदालत ने मंगलवार को दिए अपने निर्णय में प्राथमिकी रद्द करने के अलावा उच्च न्यायालय के महानिबंधक को इस निर्णय की प्रति सीजेएम, बांदा भगवान दास गुप्ता के सेवा रिकॉर्ड में रखने का निर्देश दिया।
तथ्यों के मुताबिक, सीजेएम गुप्ता ने लखनऊ में वंदना पाठक नाम की महिला से एक मकान खरीदा और जब उन्होंने बिजली का कनेक्शन अपने नाम करने के लिए आवेदन किया तो उन्हें स्थानीय विद्युत उपखंड के एसडीओ द्वारा सूचित किया गया कि इस बिजली कनेक्शन पर 1,66,916 रुपये बकाया है।
सीजेएम गुप्ता ने मकान की पूर्व स्वामिनी, उसके पति और बिजली विभाग के कई अधिकारियों के खिलाफ अगस्त, 2013 में अपर जिला जज, लखनऊ की अदालत में धोखाधड़ी और अन्य आरोपों के साथ शिकायत की।
हालांकि, जब बिजली विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कोई मामला नहीं पाया गया तो इसके बाद सीजेएम गुप्ता ने जिला उपभोक्ता फोरम और विद्युत लोकपाल के समक्ष अपने मामले में पैरवी की, लेकिन हर जगह वह मुकदमा हार गए।
अदालत ने कहा कि जब सीजेएम गुप्ता लखनऊ में अपना उद्देश्य पूरा करने में विफल रहे तो उन्होंने ‘‘अपनी कुर्सी और पद की नीलामी कर फर्जी कहानी गढ़ने’’ का निर्णय किया और इन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कराने में सफल रहे।
भाषा राजेंद्र आशीष
आशीष
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