मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर नेहरू की बराबरी की, आगे कम नहीं होंगी चुनौतियां |

मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर नेहरू की बराबरी की, आगे कम नहीं होंगी चुनौतियां

मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर नेहरू की बराबरी की, आगे कम नहीं होंगी चुनौतियां

:   Modified Date:  June 9, 2024 / 08:41 PM IST, Published Date : June 9, 2024/8:41 pm IST

(कुमार राकेश)

नयी दिल्ली, नौ जून (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता नरेन्द्र मोदी ने रविवार को लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेकर इतिहास रच दिया। इसके साथ ही वह इस उपलब्धि को हासिल करने वाले पहले गैर-कांग्रेसी नेता और जवाहरलाल नेहरू के बाद दूसरे ऐसे नेता बन गए हैं। बहुत कम ही लोगों ने सोचा होगा कि भाजपा का कोई नेता यह उपलब्धि हासिल कर सकेगा।

मोदी को तीसरे कार्यकाल में जनादेश पूर्व के दो कार्यकालों की तरह नहीं मिला है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने दम पर बहुमत हासिल करने में विफल रही। चुनाव से पूर्व भाजपा ने चार सौ पार का नारा दिया था लेकिन वह अपने गठबंधन के सहयोगियों के साथ तीन सौ के आंकड़े को भी पार नहीं कर सकी।

इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और ‘इंडिया’ गठबंधन ने अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया और उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान सहित कई हिन्दी पट्टी के क्षेत्रों में भाजपा के रथ को रोकने में सफलता हासिल की। यही कारण रहा कि नतीजों के बाद विपक्षी दलों ने चुनाव परिणामों को मोदी की ‘नैतिक हार’ करार दिया। कांग्रेस को इस चुनाव में 99 सीटों पर सफलता मिली।

बहरहाल, यह भाजपा की विशाल राजनीतिक उपस्थिति का ही परिणाम है कि लगातार तीसरे लोकसभा चुनाव में उसने 240 सीटें हासिल कर सबसे बड़े दल का तमगा हासिल किया।

भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने 293 सीटें जीती हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे किसी भी चुनाव-पूर्व गठबंधन की सबसे बड़ी सफलता करार दिया है।

चुनावों से मिली चुनौतियों के बावजूद, आने वाले वर्षों में भारतीय राजनीति 73 वर्षीय मोदी के इर्द-गिर्द ही घूमने वाली है। हालांकि, इस दौरान उन्हें गठबंधन की राजनीति के विभिन्न पहलुओं का सामना करना पड़ेगा।

गोधरा ट्रेन अग्निकांड के बाद राज्य में हुए दंगों के साये में 2002 में गुजरात विधानसभा चुनावों में पहली बार भाजपा का नेतृत्व करने के बाद से मोदी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

हालांकि उनके विरोधियों ने 2002 में उन्हें राजनीतिक रूप से खारिज कर दिया था, लेकिन वह अपनी पार्टी के लिए हिंदुत्व और विकास का विजयी मिश्रण बनकर ताकत के साथ उभरते चले गए।

मोदी ने 2002, 2007 और 2012 में गुजरात में पार्टी का नेतृत्व किया और सत्ता में पहुंचाया और इसके बाद 2014 और 2019 में केंद्र में अपनी पार्टी को जीत दिलाने और सत्ता तक पहुंचाने में सबसे अहम भूमिका निभाई। हालांकि इस बार भाजपा की जीत सबसे अलग है क्योंकि वह अपने दम पर बहुमत लाने में विफल रही।

साल 2014 में पहली बार पदभार संभालने के बाद मोदी को पहली बार इस दफे एक मजबूत विपक्ष का सामना करना पड़ा है। आलोचकों ने कई राज्यों में भाजपा को हुए चुनावी नुकसान के बाद उनकी क्षमता पर भी सवाल उठाए हैं। खासकर, उत्तर प्रदेश में भाजपा के खराब प्रदर्शन के कारण। लोकसभा में सबसे अधिक अस्सी सांसदों को भेजने वाले इस राज्य में सपा-कांग्रेस के गठबंधन ने भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को पीछे छोड़ दिया।

भाजपा के संगठन में डेढ़ दशक से अधिक के कार्यकाल के दौरान राजनीति की अनिश्चितताओं को देखने वाले मोदी ने इस चुनाव के परिणामों का विश्लेषण करने में अडिग विश्वास की एक तस्वीर प्रस्तुत की है। देश के कुछ हिस्सों में विपक्ष की आश्चर्यजनक सफलताओं को उन्होंने कोई तरजीह ना देते हुए दावा किया है कि राजग ने इस चुनाव में बेहद शानदार प्रदर्शन किया है। उन्होंने यह भी कहा है कि राजग जहां लगातार तीसरी बार सत्ता हासिल करने में सफल रहा वहीं विपक्षी ‘इंडिया’ के सीटों की संख्या भाजपा की ओर से अपने बूते जीती गयी सीटों की संख्या से कम रही।

लोकसभा चुनाव के साथ ही ओडिशा विधानसभा के भी चुनाव हुए थे जिसमें भाजपा ने भारी बहुमत हासिल किया। यह पहली बार है जब भाजपा वहां अपने दम पर सरकार बनाने जा रही है। तेलंगाना में भी भाजपा सांसदों की संख्या दोगुनी हुई जबकि अब तक अछूते रहे केरल में उसने पहली बार अपना खाता खोला।

भाजपा के नेताओं का कहना है कि ये उपलब्धियां प्रधानमंत्री मोदी की देशव्यापी अपील को रेखांकित करती हैं।

अब जबकि मोदी विश्वस्त और अनुभवी हाथों के साथ तीसरे कार्यकाल के लिए कमान संभालने जा रहे हैं, भाजपा को उम्मीद है कि वह अपने विरोधियों को फिर से गलत साबित करेंगे और सरकार में अपनी नीतियों और हिंदुत्व, विकास और कल्याणवाद के मूल के साथ राजनीति में नए विचारों के साथ पार्टी को विस्तार देना जारी रखेंगे।

इस बार हरियाणा और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में उनकी फिर से एक परीक्षा होगी। लोकसभा चुनाव में दोनों ही राज्यों में भाजपा को झटका लगा है। दोनों राज्यों में अक्टूबर के आसपास चुनाव होने की संभावना है।

भाषा ब्रजेन्द्र ब्रजेन्द्र नरेश

नरेश

 

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