पंडित नेहरू श्रीलंका के पक्ष में कच्चातिवु पर से दावा छोड़ना चाहते थे : अन्नामलाई |

पंडित नेहरू श्रीलंका के पक्ष में कच्चातिवु पर से दावा छोड़ना चाहते थे : अन्नामलाई

पंडित नेहरू श्रीलंका के पक्ष में कच्चातिवु पर से दावा छोड़ना चाहते थे : अन्नामलाई

:   Modified Date:  March 31, 2024 / 10:32 PM IST, Published Date : March 31, 2024/10:32 pm IST

कोयंबटूर, 31 मार्च (भाषा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष के.अन्नामलाई ने कथित तौर पर सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत नेहरू युग के आधिकारिक ‘फाइल नोटिंग’को उद्धत करते हुए आरोप लगाया कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत की संप्रभुत्ता का समर्थन करने वाले विचार के बावजूद श्रीलंका को कच्चातिवु द्वीप देने के इच्छुक थे।

अन्नामलाई ने संवाददाताओं से कहा कि ‘‘कच्चाथिवु को सौंपना एक रहस्य है, इसे किसने दिया और किन परिस्थितियों में दिया, यह एक रहस्य है’’ और तब से यह जटिल मुद्दा तमिलनाडु में गूंज रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि नेहरू ने इस मुद्दे को ‘एक छोटा सा मुद्दा’ बताया था और पहले प्रधानमंत्री को इसे पड़ोसी देश को सौंपने में कोई झिझक नहीं थी।

भाजपा नेता ने कहा कि हालांकि इस मुद्दे पर बहुत बहस हुई, संबंधित दस्तावेज सार्वजनिक मंच पर उपलब्ध नहीं थे और सभी संबंधी जानकारी बहुत लंबे समय तक गोपनीय रही।

अन्नामलाई ने कहा, 1974 में द्वीप को सौंपने से तमिलनाडु के मछुआरे गंभीर रूप से प्रभावित हुए और इससे मछुआरों की परेशानियों पर राजनीति भी हुई। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष कहा कि उन्होंने विदेश मंत्रालय से आरटीआई के जरिये जानकारी मांगी है।

अन्नामलाई ने कहा कि जब उन्होंने दस्तावेज मांगे, तो विदेश मंत्रालय ने ‘‘दो दस्तावेज साझा’ किए जो अब तक सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं थे।’’ उन्होंने कहा कि एक 1968 में अनौपचारिक सलाहकार समिति की बैठक पर था और दूसरा 1974 में कच्चातिवु मुद्दे पर तत्कालीन विदेश सचिव और तत्कालीन तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम करुणानिधि के बीच चर्चा से संबंधित था।

उन्होंने आरोप लगाया, ‘‘उस समय कांग्रेस पार्टी ने साजिश रची थी और कच्चातिवु को सौंप दिया था।’’

अन्नामलाई ने कहा कि 1968 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके श्रीलंकाई समकक्ष डुडले सेनानायके के बीच हुए एक ‘गुप्त समझौते’ के आरोपों के बाद संसद में बहस हुई थी, जिसमें कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने की परिकल्पना की गई थी।

उन्होंने कहा कि कच्चातिवु देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है और उस द्वीप पर भारत की संप्रभुता को लेकर कभी कोई विवाद नहीं था। रामनाड (दक्षिणी तमिलनाडु में वर्तमान रामनाथपुरम जिला) के राजा का उस स्थान पर 1875 से 1948 तक निर्बाध अधिकार था।

श्रीलंका ने 1948 में स्वतंत्रता के बाद कच्चाथिवु पर दावा करना शुरू किया। शुरुआत में भारत का रुख यह था कि कच्चातिवु पर उसकी संप्रभुता है और यह द्वीप उसका है।

अन्नामलाई ने कहा कि बाद में पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1961 में एक ‘फ़ाइल नोटिंग’ (10 मई, 1961) में कहा कि वह इस छोटे से द्वीप को बिल्कुल भी महत्व नहीं देते हैं और उन्हें इस पर भारत के दावे को छोड़ने में कोई हिचकिचाहट नहीं है।

भाषा धीरज नरेश

नरेश

 

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