(सुमीर कौल)
शोपियां/कुलगाम (कश्मीर), 25 मई (भाषा) आतंकवादियों की धमकियों और अलगाववादियों द्वारा प्रायोजित बहिष्कार के आह्वान के कारण लंबे समय से मतदान से वंचित रहे गांवों के निवासी लोकतंत्र के प्रति अटूट प्रतिबद्धता का उल्लेखनीय प्रदर्शन करते हुए शनिवार को लोकसभा चुनाव के छठे चरण में बड़ी संख्या में मतदान करने पहुंचे।
चिलचिलाती धूप का सामना करते हुए, कतारबद्ध लोगों ने धैर्यपूर्वक चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने का इंतजार किया।
शोपियां का एक हिस्सा पुनर्गठित अनंतनाग-राजौरी संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है, जहां शनिवार को छठे चरण में मतदान हुआ। सुबह सात बजे मतदान शुरू होने के बाद पूरे निर्वाचन क्षेत्र में मध्यम से तीव्र गति से मतदान देखा गया।
एक आश्चर्यजनक क्षण वह था जब सक्रिय आतंकवादियों के परिवार के सदस्यों को मतदान केंद्रों पर अपने मताधिकार का इस्तेमाल करते हुए देखा गया।
हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकवादी जुनैद रेशी के पिता मुश्ताक अहमद रेशी को शोपियां के बेमिनपुरा में एक मतदान केंद्र पर मतदान करते देखा गया।
पत्रकारों से बात करते समय वह उत्साह से भरे हुए थे। उन्होंने लोकतंत्र की ताकत और भारत के विचार में अपना विश्वास व्यक्त किया और लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने के अपने दृढ़ संकल्प पर जोर दिया।
इन गांवों में हुए मतदान ने न केवल आतंकवाद के बढ़ते खतरे को चुनौती दी, बल्कि लोकतंत्र के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए लोगों के बीच एक मजबूत प्रतिबद्धता भी प्रदर्शित की।
मतदाताओं में उत्साह इतना था कि दिव्यांग लोग भी घर पर मतदान की सुविधा का लाभ उठाने के बजाय मतदान केंद्रों पर पहुंचे।
अब्दुल अहाद (72) ने नादिमर्ग में एक मतदान केंद्र पर ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मतदान हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है और हम इस उम्मीद के साथ मतदान प्रक्रिया में उत्सुकता से भाग ले रहे हैं कि हमारा प्रतिनिधि हमारी समस्याओं का समाधान करेगा।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि बिजली, पानी और बेहतर सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी के कारण ग्रामीण परेशान हैं। उन्होंने कहा, ‘‘विकास की बात सिर्फ कागजों पर है, जमीन पर नहीं। सरकार को गरीब आबादी वाले गांव पर ध्यान देना चाहिए।’’
घोड़े पर सवार होकर मतदान केंद्र पहुंचे एक वरिष्ठ नागरिक मोहम्मद सुल्तान ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, ‘‘मैं एक बीमारी से पीड़ित हूं और चलने में असमर्थ हूं…मतदान करके, मैंने अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है और अब यह हमारे प्रतिनिधि का कर्तव्य है कि वह हमारी जरूरतों का ध्यान रखे जिसमें स्कूल की अच्छी संरचना, बेहतर सड़कें, उचित स्वास्थ्य देखभाल के अलावा चौबीसों घंटे पानी और बिजली की आपूर्ति शामिल हैं।’’
उन्होंने कहा कि ज्यादातर निवासी पेशे से श्रमिक हैं और बिजली के भारी बिल का भुगतान नहीं कर सकते। उन्होंने कहा, ‘‘हमें 150 रुपये से 200 रुपये के बीच बिल मिलते थे, लेकिन अब बिजली की लागत 1,000 रुपये से 1,500 रुपये के बीच है। हमारे लिए बिजली बिल का भुगतान करना बहुत मुश्किल है। यदि हम बिलों का भुगतान करेंगे तो हम अपने परिवारों का भरण-पोषण कैसे करेंगे?’’
वरिष्ठ अधिकारियों में से एक ने कहा कि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में भी मतदान अधिक हुआ।
भाषा
देवेंद्र पवनेश
पवनेश
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