वन अधिकार कानून को लागू करने में राज्य सरकारें विफल रहीं, केंद्र ने इसे कमजोर किया: कांग्रेस |

वन अधिकार कानून को लागू करने में राज्य सरकारें विफल रहीं, केंद्र ने इसे कमजोर किया: कांग्रेस

वन अधिकार कानून को लागू करने में राज्य सरकारें विफल रहीं, केंद्र ने इसे कमजोर किया: कांग्रेस

:   Modified Date:  April 18, 2024 / 02:19 PM IST, Published Date : April 18, 2024/2:19 pm IST

नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) कांग्रेस ने बृहस्पतिवार को आरोप लगाया कि आदिवासी समुदाय के लिए महत्वपूर्ण वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) को लागू करने में राज्य सरकारें विफल रहीं तथा केंद्र की मौजूदा सरकार ने इस कानून को कमजोर कर दिया।

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने यह भी कहा कि केंद्र में ‘इंडिया’ गठबंधन के नेतृत्व वाली सरकार बनने पर एक समर्पित बजट के साथ एक राष्ट्रीय मिशन पूरे भारत में एफआरए को लागू करने पर केंद्रित होगा।

रमेश ने ‘एक्स’ पर पोस्ट किया, ‘‘कांग्रेस पार्टी की परिवर्तनकारी 5 न्याय 25 गारंटी में से एक, हमारे आदिवासी भाइयों और बहनों के लिए सबसे महत्वपूर्ण वन अधिकार अधिनियम पर हमारी गारंटी है।’’

उन्होंने कहा कि दिसंबर 2006 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार द्वारा पारित एक ऐतिहासिक कानून, एफआरए वन-निवास समुदायों को अपने जंगलों का प्रबंधन करने और आर्थिक लाभ के लिए वन उपज की कटाई करने का अधिकार देता है।

रमेश ने दावा किया, ‘‘एफआरए को लागू करने में राज्य सरकारें विफल रही हैं। केंद्रीय स्तर पर भी इसे कमजोर करने के लिए मोदी सरकार ने कानून में संशोधन कर दिया। इन दोनों कारणों की वजह से एफआरए कानून के कार्यान्वयन को रोक दिया गया है।’’

उनके मुताबिक, आज तक केवल तीन राज्यों- महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में एक लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक वन भूमि है जो कि अभी तक एफआरए के तहत नहीं है।

कांग्रेस नेता का कहना था, ‘‘कांग्रेस पार्टी ने वादा किया है कि एक साल के भीतर सभी लंबित एफआरए के दावों का समाधान कर दिया जाएगा। एक समर्पित बजट के साथ एक राष्ट्रीय मिशन, पूरे भारत में एफआरए को लागू करने पर केंद्रित होगा।’’

उनका कहना था कि भारत भर में 34.9 प्रतिशत एफआरए दावों को खारिज कर दिया गया है, जिससे 17 लाख से अधिक आदिवासियों और अन्य वनवासियों को उनके बुनियादी अधिकारों से वंचित कर दिया गया है।

रमेश ने कहा, ‘‘हमने वादा किया है कि छह महीने के भीतर सभी अस्वीकृत एफआरए दावों की समीक्षा के लिए एक पारदर्शी प्रक्रिया होगी। एफआरए व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों अधिकार प्रदान करता है। यह दोनों ही महत्वपूर्ण हैं लेकिन सामुदायिक अधिकार की क्षमता का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया है।’’

भाषा हक हक नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)