न्याय तक पहुंच मौलिक अधिकार, एनआईए के मामले में देर से अपील दायर करने को माफ किया जा सकता है: उच्च न्यायालय |

न्याय तक पहुंच मौलिक अधिकार, एनआईए के मामले में देर से अपील दायर करने को माफ किया जा सकता है: उच्च न्यायालय

न्याय तक पहुंच मौलिक अधिकार, एनआईए के मामले में देर से अपील दायर करने को माफ किया जा सकता है: उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  September 14, 2023 / 06:53 PM IST, Published Date : September 14, 2023/6:53 pm IST

मुंबई, 14 सितंबर (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि न्याय तक पहुंच एक मौलिक अधिकार है और इसे कल्पना या संभावनाओं पर नहीं छोड़ा जा सकता।

उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण (एनआईए) अधिनियम के तहत अपील दायर करने की 90 दिन की अवधि के बाद भी अपील पर सुनवाई करने की व्यवस्था देते हुए यह टिप्पणी की। इसने कहा कि अपीलीय अदालतें देरी को माफ कर सकती हैं।

एनआईए अधिनियम की धारा 21 (5) के तहत, आदेश की तारीख से 90 दिन की अवधि की समाप्ति के बाद फैसले के खिलाफ किसी भी अपील पर विचार नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति गौरी गोडसे की खंडपीठ ने एनआईए द्वारा गिरफ्तार किए गए फैजल मिर्जा की याचिका को स्वीकार कर लिया। याचिका में जमानत के लिए अपील दायर करने में 838 दिन की देरी को माफ करने का आग्रह किया गया था।

मिर्जा ने विशेष एनआईए अदालत द्वारा उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के मार्च 2020 के आदेश को चुनौती देते हुए अपील दायर की थी।

उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि एनआईए अधिनियम को अन्य कानूनों के साथ जोड़कर देखा जाना चाहिए और इसे अपने आप में एक पूर्ण संहिता नहीं कहा जा सकता।

पीठ ने एनआईए की ओर से अख्तियार किए गए विरोधाभासी रुख पर नाखुशी भी जाहिर की। उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी की ओर से दायर इस याचिका पर एनआईए ने कहा कि देरी को माफ नहीं किया जा सकता लेकिन अन्य उच्च न्यायालयों में एनआईए ने अपने द्वारा देर से अपील दायर करने पर याचिकाएं दायर कर माफी का आग्रह किया।

बंबई उच्च न्यायालय ने कहा, “ केंद्रीय जांच एजेंसी होने के नाते, एनआईए से अपेक्षा की जाती है कि वह एक जैसा रुख अपनाए, जो या तो पक्ष में हो या खिलाफ हो। रुख अपनी जरूरत के हिसाब से बदला नहीं जा सकता। हमें एनआईए की ओर से विभिन्न उच्च न्यायालयों में अपनाए गए रुख में विरोधाभास को लेकर कोई कारण नहीं मिल पाया है।”

इसने कहा कि किसी आरोपी का अपनी सजा के खिलाफ अपील दायर करने का अधिकार भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 से जुड़ा है।

अदालत ने कहा, “ निर्दोष होने की धारणा एक मानव अधिकार है और उक्त सिद्धांत भारत में आपराधिक न्यायशास्त्र का आधार है। निर्दोष होने की धारणा अनुच्छेद 21 का एक पहलू है और यह आरोपी के लाभ को सुनिश्चित करता है।”

पीठ ने कहा कि अपील मुकदमे का विस्तार है और अपील दायर करने का एक मौलिक अधिकार है तथा इस अधिकार को कल्पना और संभावनाओं पर नहीं छोड़ा जा सकता।

इसने अपने फैसले में कहा, “ बार-बार, अदालतों ने माना है कि ‘न्याय तक पहुंच’, एक अमूल्य मानव अधिकार है, जिसे मौलिक अधिकार के रूप में भी मान्यता दी गई है।”

अदालत ने यह भी कहा कि किसी आरोपी को देर से अपील दायर करने से कोई लाभ नहीं होता है, क्योंकि उसे जेल में ही रहना पड़ता है और देर से अपील दायर करने पर आरोपी ही प्रभावित होगा, न कि एनआईए प्रभावित होगी।

पीठ ने कहा कि न सिर्फ आरोपी, बल्कि अभियोजन पक्ष को भी देरी के लिए पर्याप्त कारण बताकर 90 दिन की अवधि की समाप्ति के बाद अपीलीय अदालत का रुख करना चाहिए।

उच्च न्यायालय ने माना कि अगर इस प्रावधान को अनिवार्य माना जाता है, तो यह न्याय का मखौल होगा और उन मामलों में भी मखौल होगा, जहां आरोपियों के पास निर्धारित अवधि में अपील दायर न करने के ‘‘पर्याप्त कारण’’ हों।

भाषा नोमान नेत्रपाल

नेत्रपाल

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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