अश्लील तस्वीरें रखना अपराध नहीं, उच्च न्यायालय ने दिया महत्वपूर्ण फैसला, देखिए क्या हैं नियम | High court verdict Keeping pornography near you is not a crime

अश्लील तस्वीरें रखना अपराध नहीं, उच्च न्यायालय ने दिया महत्वपूर्ण फैसला, देखिए क्या हैं नियम

अश्लील तस्वीरें रखना अपराध नहीं, उच्च न्यायालय ने दिया महत्वपूर्ण फैसला, देखिए क्या हैं नियम

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:30 PM IST, Published Date : June 10, 2019/8:44 am IST

नई दिल्ली। केरल उच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत तौर पर अश्लील सामग्री रखने पर महत्वपूर्ण फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में कहा है कि किसी व्यक्ति के पास केवल अश्लील तस्वीरें रखना स्त्री अशिष्ट रूपण प्रतिषेध कानून के तहत अपराध नहीं है। उच्च न्यायालय ने यह एक व्यक्ति और एक महिला के खिलाफ आपराधिक मुकदमे को निरस्त करते हुए ये फैसला दिया। हालांकि हाईकोर्ट ने ये स्पष्ट किया कि ऐसी तस्वीरों का प्रकाशन या वितरण दंडनीय है।

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केरल उच्च न्यायालय के जस्टिस विजयराघवन ने अपने फैसले में कहा, ‘यदि किसी वयस्क व्यक्ति के पास अपनी कोई तस्वीर है जो अश्लील है तो 1968 के कानून 60 के प्रावधान तब तक उस पर लागू नहीं होंगे जब तक कि उन तस्वीरों को किसी अन्य उद्देश्य या विज्ञापन के लिए वितरित या प्रकाशित न किया जाए।’

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केरल हाईकोर्ट ने यह फैसला उस पिटीशन पर दिया जिसमें एक व्यक्ति और महिला के खिलाफ मुकदमे को रद्द करने की मांग की गई थी। यह मामला कोल्लम में एक जिला अदालत में लंबित था। यह मामला 2008 में दर्ज किया गया था। पुलिस ने कोल्लम के बस अड्डे पर तलाशी अभियान के दौरान पुरुष और महिला के बैगों की जांच की थी । तलाशी में दोनों के पास दो कैमरे मिले थे। जांच करने पर यह पाया गया कि उनके पास उनमें से एक की अश्लील तस्वीरें और वीडियो हैं। इस मामले को लेकर उन्हें अरेस्ट कर लिया गया था और कैमरे जब्त कर लिए गए थे। दोनों के खिलाफ जिला न्यायालय में केस चल रहा है। जिसके बाद एक मामला दर्ज किया गया था और जांच के बाद कोल्लम न्यायिक मजिस्ट्रेट के सामने अंतिम रिपोर्ट रखी गई थी।

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केरल उच्च न्यायालय के जस्टिस विजयराघवन ने अपने फैसले में कहा कि, ‘अभियोजन पक्ष यह नहीं बता पाया है कि याचिकाकर्ताओं ने अपने कब्जे में पाए गए कैमरों के निजी चित्रों को विज्ञापित या प्रसारित किया है। हरियाणा राज्य बनाम भजनलाल के मामले में शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानूनी सिद्धांतों की पृष्ठभूमि में तथ्यात्मक परिदृश्य की जांच की गई तो यह निष्कर्ष निकला कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही कुछ नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है।’