छत्तीसगढ़ की धरती से श्रीराम का गहरा नाता, वनवास के 14 में से 12 वर्ष यहीं बिताए, जीवंत तीर्थ के रुप में हैं विख्यात | Ram's deep connection with the land of Chhattisgarh 12 of the 14 years of exile spent here Renowned as a lively pilgrimage

छत्तीसगढ़ की धरती से श्रीराम का गहरा नाता, वनवास के 14 में से 12 वर्ष यहीं बिताए, जीवंत तीर्थ के रुप में हैं विख्यात

छत्तीसगढ़ की धरती से श्रीराम का गहरा नाता, वनवास के 14 में से 12 वर्ष यहीं बिताए, जीवंत तीर्थ के रुप में हैं विख्यात

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:06 PM IST, Published Date : August 5, 2020/5:27 am IST

रायपुर। छत्तीसगढ़ की धरती से भी भगवान राम का गहरा नाता रहा है जिनके बारे में ये मान्यता है कि वहां स्वयं श्रीराम के पांव पड़े थे । भगवान राम का छत्तीसगढ़ से गहरा नाता रहा है । एक तो ये उनका ननिहाल है..और दूसरा उन्होंने वनवास के 14 में से 12 वर्ष यहीं गुज़ारे । वो तमाम जगह..जहां राम के पांव पड़े थे, आज जीवंत तीर्थ में बदल गए हैं । छत्तीसगढ़ में राम वन गमन पथ के अहम पड़ाव हैं, जिसका हम आपको साक्षात्कार कर रहे हैं।

भगवान राम ने अपने वनवास के कई अहम साल छत्तीसगढ़ में गुजारे हैं। ख़ासकर कोरिया ज़िले में उनके कई पड़ाव चिन्हित हुए हैं, इनमें सीतामढ़ी, घाघरा, हरचौका, कनवाई, कोटाडोल, छतौवरा, देवसिल, रामगढ़, सोनहत, बैकुंठपुर और पटना प्रमुख रूप से शामिल हैं। कोरिया ज़िले के जनकपुर इलाके में सीतामढ़ी नाम की एक गुफा है। कहते हैं यहां भी श्रीराम ने अपने वनवास के कुछ दिन गुज़ारे थे। जनकपुर के पास स्थित घाघरा गांव अपने प्राचीन शिव मंदिर के लिए जाना जाता है। यहां भी श्रीराम के आने की बात कही जाती है।

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इसके बाद श्रीराम का सरगुजा ज़िले में प्रवेश हुआ। अनुमान है कि वो प्रयाग से मरहुत और शहडोल होते हुए सरगुजा पहुंचे थे। यहां के सूरजपुर, बांक, रक्सगंडा, देवगढ़, लक्ष्मणगढ़ और सीतापुर में उनके आने की निशानियां मौजूद हैं। सरगुजा की रामगढ़ पहाड़ी में उन्होंने अपने जीवन के कई अहम साल गुज़ारे थे। पहाड़ी के ऊपर आज भी सदियों पुराना राम-जानकी मंदिर स्थापित है। यहां की पहाड़ी पर सीता बोंगरा नाम की एक बड़ी खोह भी मौजूद है। यहीं नहीं यहां की एक गुफा, लक्ष्मण गुफा के नाम से जानी जाती है। पहाड़ी पर एक कुंड भी मौजूद है, जिसे सीताकुंड के नाम से जाता जाता है।

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रायगढ़ ज़िले में भी राम भगवान के निवास करने के साक्ष्य मिलते हैं। कहते हैं, यहां स्थित सिंघनपुर की आदिकालीन गुफाओं में भी उन्होंने कुछ समय व्यतीत किया था। सिंघनपुर की गुफाओं के पास ही एक झरना है, जिसे राम झरना के नाम से जाना जाता है। कहते हैं, राम के बाण से इस झरना की उत्पत्ति हुई है। रायगढ़ ज़िले की ही कोर्रा गुफा के बारे में भी ये कहा जाता है कि यहां श्रीराम ने अपने वनवास के कुछ दिन गुज़ारे थे। इसके अलावा रायगढ़ के धरमजयगढ़, अंबेटिकरा,गेरवानी, चंद्रपुर और पुजारी पाली में भी उनके आने की बात कही जाती है। वहीं कोरबा ज़िले में भी सीतामढ़ी नाम की एक प्राचीन जगह मौजूद है। यहां राम-जानकी का सदियों पुराना मंदिर भी है। कहा जाता है कि सीतामढ़ी में रामजी के चरण पड़े थे। आज भी यहां सीता माता के पद चिन्ह की पूजा की जाती है।

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चांपा-जांजगीर ज़िले में महानदी के किनारे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है शिवरीनारायण। कहते हैं, यहीं रहती थीं शबरी। यहां के जोगी टीला नाम की जगह पर शबरी का आश्रम होने की बात कही जाती है। जोगी टीला के पास ही शबरी टीला मौजूद हैं, जहां आज भी शबर जाति के लोग रहते हैं। वहीं यहां के शिवरीनारायण मंदिर में स्थापित राम पादुका को आज भी देखा जा सकता है। शिवरीनारायण के अलावा मल्हार, खरौद जैसे प्राचीन नगरों में भी श्री राम के आने के प्रमाण मिलते हैं।

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वहीं रायपुर ज़िले के राजिम में भी भगवान राम के आने का ज़िक्र मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि यहां त्रिवेणी संगम पर स्थित कुलेश्वर महादेव की स्थापना माता सीता ने अपने हाथों से किया था। इसके अलावा फिंगेश्वर, चंपारण्य, आरंग और चंद्रखुरी में भी राम के आने की बात कही जाती है। चंद्रखुरी गांव में कौशल्या माता का अति प्राचीन मंदिर स्थित है ।
हालांकि इस जगह से राम के पौराणिक संबंध की पुष्टि नहीं होती..लेकिन ये देश का एकमात्र ऐसा मंदिर है..जहां माता कौशल्या शक्ति के रूप में पूजी जाती हैं ।