कुतुब मीनार की जगह मंदिर था? पूजा करने के लिए कोर्ट में याचिका के क्या हैं मायने | Was the temple in place of Qutub Minar? Petition filed in court to worship

कुतुब मीनार की जगह मंदिर था? पूजा करने के लिए कोर्ट में याचिका के क्या हैं मायने

कुतुब मीनार की जगह मंदिर था? पूजा करने के लिए कोर्ट में याचिका के क्या हैं मायने

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:51 PM IST, Published Date : March 7, 2021/1:39 pm IST

नईदिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में क़ुतुब मीनार परिसर में मौजूद क़ुतुब मीनार और क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद, भारत में मुस्लिम सुल्तानों द्वारा निर्मित शुरुआती इमारतों में से हैं। क़ुतुब मीनार और उससे सटी शानदार क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद के निर्माण में वहाँ मौजूद दर्जनों हिन्दू और जैन मंदिरों के स्तंभों और पत्थरों का इस्तेमाल किया गया था। हिन्दू संगठनों का कहना है कि क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद वास्तव में एक मंदिर है और हिन्दुओं को यहाँ पूजा करने की अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने मंदिर की बहाली के लिए अदालत में याचिका भी दायर की है।

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दिल्ली के महरौली इलाक़े में स्थित क़ुतुब मीनार दुनिया के चंद अजूबों में से एक रहा है,सदियों से इसे दुनिया की सबसे ऊंची इमारत होने का दर्जा प्राप्त था, क़ुतुब मीनार से सटी मस्जिद क़ुव्वत-उल-इस्लाम के नाम से जानी जाती है। यह भारत में मुस्लिम सुल्तानों द्वारा निर्मित पहली मस्जिदों में से एक है। इस मस्जिद में सदियों पुराने मंदिरों का भी एक बड़ा हिस्सा शामिल है, देवी-देवताओं की मूर्तियाँ और मंदिर की वास्तुकला अभी भी आंगन के चारों ओर के खंबों और दीवारों पर स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। क़ुतुब मीनार के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख में लिखा है कि ये मस्जिद वहाँ बनाई गई है, जहाँ 27 हिंदू और जैन मंदिरों का मलबा था।

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इतिहासकारों के अनुसार इसमें कोई शक़ नहीं है कि ये मंदिर का हिस्सा हैं, लेकिन ये जो मंदिर थे, ये वहीं थे या आस-पास में कहीं थे, इस पर चर्चा होती रही है। ज़ाहिर सी बात है कि 25 या 27 मंदिर एक जगह तो नहीं रहें होंगे, इसलिए इन स्तंभों को इधर-उधर से एकत्र करके यहाँ लाया गया होगा। ‘क़ुतुब मीनार एंड इट्स मोन्यूमेंट्स’ के शीर्षक से लिखी गई क़िताब के लेखक और इतिहासकार बीएम पांडे मानते हैं कि जो मूल मंदिर थे वो यहीं थे। यदि आप मस्जिद के पूर्व की ओर से प्रवेश करते हैं, तो वहाँ जो स्ट्रक्चर है, वो असल स्ट्रक्चर है। इससे लगता है कि असल मंदिर यहीं थे, कुछ इधर-उधर भी रहे होंगे, जहाँ से उन्होंने स्तंभ और पत्थर के अन्य टुकड़े लाकर उनका इस्तेमाल किया गया।

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राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान की हार के बाद, मोहम्मद ग़ौरी ने अपने जनरल क़ुतुबुद्दीन ऐबक को दिल्ली का शासक नियुक्त किया था, महरौली में स्थित क़ुतुब मीनार को क़ुतुबुद्दीन ऐबक और उनके उत्तराधिकारी शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने 1200 ईस्वी में बनवाया था। क़ुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद ऐबक के दौर में बनाई गयी थी और बाद में इसका विस्तार होता रहा। मस्जिद के क़िब्ले (पश्चिम दिशा) की तरफ़ का जो हिस्सा है, वह प्रारंभिक इस्लामी शैली में बनाया गया है। मेहराब (जहाँ खड़े होकर इमाम साहब नमाज़ पढ़ाते हैं) की दीवारों में क़ुरान की आयतें और फूलों की नक़्क़ाशी की गई है।

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इन सब के बावजूद मस्जिद में मंदिर के अवशेष देखे जा सकते हैं। कहीं-कहीं पुराने मंदिर का पूरा ढांचा मौजूद है, कुछ हिन्दू संगठन लंबे समय से यह दावा करते रहें हैं कि क़ुतुब कॉम्प्लेक्स वास्तव में हिंदू धर्म का केंद्र था, हिन्दू जागरण संगठन के कुछ कार्यकर्ताओं ने हाल ही में अदालत में एक याचिका दायर की है और पूजा के लिए परिसर को बहाल करने की माँग की है। उनका कहना है कि “वहाँ अभी भी हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियाँ हैं जो टूटी हुई पड़ी हैं, यह देश के लिए शर्म की बात है, इस संबंध में हमने दावा किया है कि हमें वहाँ पूजा करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। इस मामले की सुनवाई दिल्ली की एक अदालत में अप्रैल के पहले सप्ताह में होगी।

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पुरातत्वविदों का कहना है कि अतीत की इमारतों और घटनाओं को आज के संदर्भ में देखना सही नहीं है, उन्हें ऐसे ही रखना महत्वपूर्ण है। पुरातत्व विभाग के पूर्व प्रमुख सैयद जमाल हसन के अनुसार “आर्ट और आर्किटेक्चर से संबंधित जो भी इमारतें हैं, चाहे वो किसी भी धर्म की हों, बौद्ध धर्म की हों, जैन हों, हिन्दू धर्म की हों या इस्लाम की हों, अतीत की जो भी विरासत हो, निशानियाँ हों, हमें उन्हें ‘जैसी हैं, वैसे ही रहने देना चाहिए’, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ यह देखकर समझ सकें कि यह किसकी वास्तुकला शैली है, यह निर्माण की गुप्त शैली है, यह शुंग शैली है, यह मौर्य शैली, यह मुग़ल शैली है। उस शैली को जीवित रखना हमारा काम है।

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कई हिन्दू संगठन और इतिहासकार ताज महल, पुराना क़िला, जामा मस्जिद और अतीत के मुस्लिम शासकों द्वारा निर्मित कई अन्य इमारतों को हिन्दू इमारत मानते हैं, उनका मानना है कि मुस्लिम शासकों ने प्राचीन हिन्दू मंदिरों और इमारतों को ध्वस्त करके बदल दिया था। क़ुतुब मीनार के परिसर में मंदिर की बात कहने वाले कहते हैं कि हम लोगों ने मिलकर शपथ ली है कि भारत में जितने भी मंदिर थे, जो मुग़ल आक्रमणकारियों द्वारा हिंदुओं को अपमानित करने और मस्जिद बनाने के लिए ध्वस्त किए गये थे, हम वहाँ भारत की गरिमा को दोबारा बहाल करेंगे और इन मंदिरों को आज़ाद कराएंगे।

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प्रोफ़ेसर इरफ़ान हबीब के अनुसार “इस तरह की जितनी बातें हैं वो भारत की विरासत को नष्ट करने वाली हैं, यदि आप इस तरह से इतिहास को देखेंगे, तो हम जानते हैं कि ऐसे बौद्ध मठ हैं, जो मंदिर बनाये गए हैं, तो फिर उनको अब फिर से क्या बनाया जाये? आप जानते हैं कि महाबोधि मंदिर में जो मूर्ति हैं, जहाँ तक मुझे याद है, वो शिव जी की मूर्ति है, इस तरह तो यह कभी ना ख़त्म होने वाला सिलसिला है।” अतीत में, मुसलमानों ने कई ऐतिहासिक धार्मिक इमारतों में पूजा शुरू करने की कोशिश की थी।

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इतिहासकार कहते हैं कि धार्मिक प्रकृति की प्राचीन इमारतों पर पुरातत्व विभाग की नीति बिलकुल स्पष्ट है, कि जो प्राचीन इमारतें पुरातत्व विभाग के संरक्षण में लिए जाने के समय धार्मिक इस्तेमाल में नहीं थी, उन्हें नमाज़ पढ़ने या पूजा करने के लिए बहाल नहीं किया जा सकता है, जो इमारतें धार्मिक उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल में थी वहाँ पूजा करने से नहीं रोका जा सकता है। जब पुरातत्व विभाग द्वारा क़ुतुब मीनार परिसर को अपने कब्ज़े में लिया गया था, तब वहाँ कोई नमाज़ या पूजा नहीं हो रही थी, इसलिए आज के दौर में पूजा के लिए इसे बहाल करने की माँग पूरी तरह से ग़लत है।

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क़ुतुब मीनार परिसर पुरातत्व विभाग का एक ऐसा परिसर है, जिसे बहुत अच्छी तरह से संरक्षित रखा गया है, ऐतिहासिक क़ुतुब मीनार, वहाँ के मक़बरे, मस्जिदें और मदरसे हर दिन हजारों पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, क़ुतुब मीनार का यह परिसर कई साम्राज्यों का महत्वपूर्ण केंद्र रहा है, सरकार ने इसे राष्ट्रीय धरोहर के रूप में संरक्षित किया है। इतिहासकारों का कहना है कि इसे धार्मिक मण्डलों में विभाजित करने की जगह इतिहास के स्मारक के रूप में ही देखना चाहिए।