भोपाल: कोरोना काल में मध्यप्रदेश के किसानों को दोहरी मार पड़ी है। तूफान ताऊते के असर से सूबे में जोरदार बारिश हुई। बारिश के कारण अलग-अलग जिलों खरीदी केंद्रों में रखा कई क्विंटल गेहूं भीग गया। कई जगह तो किसान सोसायटी में अपनी फसल बेचने का इंतजार कर रहे थे। वहीं, जहां खऱीदी हो चुकी थी वहां गेहूं की बोरियों मे फंगस लगने की खबर है। मुद्दा किसान से जुड़ा है, तो सियासत भी जोरों पर हैं। लेकिन सवाल है कि बारिश के पानी से अनाज की जो बर्बादी हुई है उसका जिम्मेदार कौन है?
मध्यप्रदेश के अलग अलग इलाकों में बारिश के कारण कई क्विंटल गेहूं बर्बाद हो गया। ये सही है कि कुछ जगह गेंहूं की फसल को सोसायटी ने खरीद लिया था, लेकिन उन किसानों का क्या जो अपनी फसल बेचने का इंतजार कर रहे थे। सवाल ये है कि क्या गेहूं के भंडारण का इंतजाम नहीं किया गया? क्या अधिकारियों को बारिश का पूर्वानुमान नहीं था जबकि मौसम विभाग पहले से चेतावनी दे रहा था? क्या बारदाने की कमी के कारण ये हालात बने? क्या प्रदेश के भंडार गृहों में जगह कम पड़ गई है? क्या अधिकारियों को पहले से इस बर्बादी का अहसास नहीं था? कुछ जगह किसानों को उनकी फसल का भुगतान भी कर दिया गया, लेकिन अनाज की जो बर्बादी हुई है उसका जिम्मेदार कौन है? लेकिन पहले से ही कोरोना के कारण जिंदगी की लड़ाई लड़ रहे उस किसान का क्या जिसकी फसल नहीं खरीदी गई और वो भीग गई और अब यही सियासी मुद्दा बन गया है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर जल्द से जल्द किसानों की समस्या दूर करने की मांग की है।
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किसान एक ऐसा मुद्दा है जिसे कोई भी राजनैतिक दल नाराज नहीं कर सकता है। मध्यप्रदेश में भी केद्र सरकार यदि किसानों को 6 हजार किसान सम्मान निधि दे रही है तो राज्य सरकार ने भी चार हजार रुपए का प्रावधान किया है। इस बीच फसल बर्बाद होने से पहले खाद की कीमतों में बढ़ोतरी को लेकर भी कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने आ चुकी है। बीजेपी जहां इसे किसानों के लिए हितकारी कदम बताती है वहीं कांग्रेस इसे किसानों के साथ धोखा कह रही है। वैसे बर्बाद फसल को लेकर गृहमंत्री ने भरोसा दिलाया है कि हर किसान का एक एक दाना खरीदा जाएगा।
कोरोना के बीच फसल बर्बादी किसानों पर दोहरी मार है और ये बात अच्छे से मालूम है कि देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ किसान ही है। यदि उसकी फसल खऱाब हुई तो उसका असर पूरे देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ सकता है जाहिर है ऐसे में जरुरत सियासत को छोड़कर किसान को फायदा पहुंचाने की है ताकि आने वाले समय में देश की अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके।
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