नई तकनीक से संभव है सफेद दाग का इलाज | White Spots Treatment :

नई तकनीक से संभव है सफेद दाग का इलाज

नई तकनीक से संभव है सफेद दाग का इलाज

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 06:06 AM IST, Published Date : May 18, 2018/1:08 pm IST

शरीर पर होने वाले सफेद दाग को लेकर लोगों के मन में तरह-तरह की गलत धारणाएं रहती है लेकिन डाक्टर की नज़र में ये एक कॉस्मेटिक प्रॉब्लम से ज्यादा कुछ नहीं है। सफेद दाग क्यों होता है और उसका उपचार क्या है ये जानने की  कोशिश करेंगे हम. सभी जानना चाहते हैं कि आखिर क्या है सफेद दाग? -एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है। ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) उलटा असर यानी शरीर को ही नुकसान पहुंचाने लगती है। -सफेद दाग के मामले में खराब इम्यूनिटी की वजह से शरीर में स्किन का रंग बनाने वाली कोशिकाएं मेलानोसाइट(melanocyte)मरने लगती हैं। इससे शरीर में जगह-जगह उजले धब्बे बन जाते हैं। -सफेद दाग को वीटिलिगो, ल्यूकोडर्मा, फुलेरी और श्वेत पात नाम से भी जाना जाता है।

 

सफ़ेद दाग कई तरह के होते हैं –

 शरीर में फैलाव के आधार पर सफेद दाग को अलग -अलग  कैटगरी में बांटा जा सकता है: -लिप-टिप: होठों और हाथों के ऊपर -फोकल: शरीर में एक-दो जगह पर छोटे-छोटे सफेद दाग -सेग्मेंटल: एक पूरे हिस्से में, मिसाल के लिए पूरे हाथ या पांव में सफेद दाग होना -जनरलाइज्ड: शरीर के कई हिस्सों में सफेद दाग का फैलना.

क्या हैं लक्षण? -जब स्किन का रंग हल्का पड़ना शुरू हो जाए और उस हिस्से के बाल भी सफेद होना शुरू हो जाएं तो समझिए कि यह सफेद दाग है। -अगर एक जगह पहले से ही सफेद दाग बन गया हो और उसके बाद कहीं चोट, खरोंच या ठोकर लगती है और वह जगह भी सफेद होने लगे तो मान लेना चाहिए कि सफेद दाग शरीर में तेजी से फैल रहा है। -इन सफेद दागों के ऊपर कोई खुजली, दर्द और स्राव (सेक्रिशन) नहीं होता और संवेदनशीलता भी सामान्य रहती है। हालांकि पसीने और ज्यादा गर्मी से जलन पैदा हो सकती है। -अगर सफेद दाग बनें, पर उस एरिया की स्किन के बाल काले रहें तो उस स्टेज में इलाज की गुंजाइश ज्यादा और जल्दी होती है।

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इलाज है मुमकिन -सफेद दाग न फैले इसके लिए आमतौर पर तीन दवाएं दी जाती हैं: मिनी स्टेरॉयड पल्स(mini steroid pulse), लिवामिसोल(levamisole), एजोरान (Azoran)। मिनी स्टेरॉयड पल्स से हालांकि कई बार वजन बढ़ जाता है। -स्किन का रंग वापस लाने के लिए बाबची सीड्स (babchi seeds-8 methody psoralence), एपिफरमल फाइब्रोकास्ट ग्रोथ फैक्टर (epiphermal fibroblast growth factor), कैल्सिन्युरिन इन्हिबिटर ऑइंटमेंट (calcineurin inhibitor ointment), वीक कॉर्टिको स्टेरॉयड क्रीम (weak cortico steroid cream), ऑर्गन प्लैसेंटल एक्सट्रैक्ट क्रीम (organ placental extract cream)। -फोटो थेरपी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। इसके तहत सूर्य की किरणों UVA और नैरोबैंड UVB का इस्तेमाल स्किन का रंग फिर से सामान्य बनाने के लिए किया जाता है। इस थेरपी का साइड इफेक्ट यह है कि इसे करते हुए सावधानी न बरती जाए तो स्किन काली पड़ सकती है। -यूं यह बीमारी 1000-1500 रुपए महीने के खर्च के हिसाब से ठीक की जा सकती है। ठीक होने में कितना समय लगेगा, यह इस पर निर्भर करता है कि शरीर का कितना भाग प्रभावित है? -यह अहम है कि सफेद दाग के असर में आने के बाद कोई शख्स कितनी जल्दी सफेद दाग एक्सपर्ट के पास ट्रीटमेंट के लिए पहुंचता है। 

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इलाज के दौरान यह बात अहम है कि डॉक्टर सफेद दाग होने के कारण के बारे में पता करे। मिसाल के तौर पर अगर यह ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर की वजह से हुआ है तो उस डिसऑर्डर के बेहतर इलाज पर सफेद दाग का इलाज निर्भर करेगा। 

क्यों होता है सफेद दाग? सफेद दाग अलग-अलग लोगों में अलग-अलग वजहों से हो सकता है: -कुछ लोगों में यह सफेद दाग से पीड़ित पैरंट्स से हो सकता है। हालांकि ऐसे मामले 2 से 4 फीसदी ही होते हैं। -बच्चों में यह ज्यादातर क्रॉनिक इन्फेक्शन की वजह से यानी लगातार गला खराब होने, पेट खराब होने और अनीमिया की वजह से होता है। इन बीमारियों के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाओं से बॉडी की इम्यूनिटी प्रभावित होती है और ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर पैदा होता है। -बड़े लोगों में ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर की वजह से थाइरॉयड की समस्या पैदा हो सकती है, जिससे सफेद दाग होने की आशंका रहती है। -एलोपेशिया एरियाटा (alopecia areata) भी एक ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें सिक्के के रूप में शरीर से बाल जाने लगते हैं। यह भी सफेद दाग की वजह बन सकता है। -कुछ मामलों में सफेद दाग मस्से या बर्थ मार्क (halo nevus) की वजह से हो सकता है। मस्सा या बर्थ मार्क बच्चे के बड़े होने के साथ-साथ आसपास की स्किन का रंग खाना शुरू कर देता है। शरीर के एक हिस्से में शुरू होकर यह दूसरे हिस्से पर भी फैल सकता है। 20-30 फीसदी लोगों को सफेद दाग इसी तरह होता है। -इसके अलावा केमिकल ल्यूकोडर्मा (chemical leucoderma) भी हो सकता है, खास तौर से उन औरतों में, जो चिपकाने वाली बिंदी का लगातार इस्तेमाल करती हैं। इससे चेहरे पर सफेद दाग होने का खतरा रहता है। दरअसल, खराब क्वॉलिटी की बिंदी में मोनोबंजाइल ईस्टर्स ऑफ हाइड्रोक्यूनोन (monobenzyl esters of hydroquinone) पदार्थ पाया जाता है, जिससे सफेद दाग होता है, इसलिए अच्छी क्वॉलिटी की बिंदी ही लगाएं। इसी तरह हवाई या प्लास्टिक की खराब क्वॉलिटी की चप्पलों से भी पैरों पर सफेद दाग हो सकता है। -ज्यादा केमिकल एक्सपोजर यानी प्लास्टिक, रबर या केमिकल फैक्ट्री में काम करने वाले लोगों को सफेद दाग हो सकता है। कीमोथेरपी कराने वाले लोगों में भी सफेद दाग होने की आशंका रहती है।एक्सपर्ट कौन वीटिलिगो एक्सपर्ट भी डर्मटॉलजिस्ट या स्किन स्पेशलिस्ट ही होते हैं, लेकिन उनका सफेद दाग के इलाज करने का अनुभव सामान्य स्किन की बीमारियों को ठीक करने वाले डर्मटॉलजिस्ट की तुलना में कहीं ज्यादा होता है और वे मरीज की दिक्कतों का ज्यादा सही आकलन कर पाते हैं।

जानें नई तकनीक जो सफेद दाग के लिए वरदान है –

सक्शन ब्लिस्टर एपिडरमल ग्राफ्टिंग (Suction blister epidermal grafting) -इसमें सफेद दाग से प्रभावित शरीर के छोटे हिस्से को कवर किया जाता है। -स्किन को वैक्यूम के जरिए दो भाग में अलग करके जहां सफेद दाग है, वहां ऊपरी भाग को रखा जाता है। -ऊपरी भाग के जो रंग बनाने वाले कण (मेलानोसाइट्स) हैं, वे सफेद दाग स्किन के अंदर जाकर सामान्य रंग ले आते हैं।

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मेलानोसाइट इपिडरमल सेल सस्पेंशन (Melanocyte epidermal cell suspension) -इसमें बिना किसी टांके-चीरा के सफेद दाग से प्रभावित बड़े हिस्से को कवर किया जाता है। -शरीर से सामान्य स्किन के एक छोटे-से टुकड़े को लेकर उसके रंग बनाने वाले कणों को अलग करके उसे तरल पदार्थ में तब्दील किया जाता है। -जहां सफेद दाग है, वहां इस लिक्विड को लगा दिया जाता है। इससे सामान्य रंग वापस लौट आता है।

मिलानोसाइट कल्चर (Melanocyte culture) -इसके तहत सामान्य स्किन की बायॉप्सी कर उसके एक बहुत छोटे टुकड़े को स्पेशलाइज्ड लैब में कल्चर किया जाता है और उसे सफेद दाग वाली स्किन पर लगाया जाता है।

प्लैटलेट रिच प्लाज्मा (Platelet rich plasma) -इसके तहत शरीर के अंदर ब्लड से प्लाज्मा निकाल कर उसे ट्रीट किया जाता है। इसके बाद शरीर के जिस हिस्से पर सफेद दाग है, वहां इसे इंजेक्ट किया जाता है। -दरअसल, प्लाज्मा में स्टेम सेल्स होते हैं, जिससे हमारे शरीर के बाकी सेल्स बनते हैं। ट्रीट किए हुए प्लाज्मा को सफेद दाग प्रभावित हिस्से में इंजेक्ट करने से स्किन का रंग बनाने वाली कोशिकाओं के नए सिरे से बनने की संभावना बढ़ जाती है। -यह सबसे लेटेस्ट तकनीक है और इसके अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं। इसका कोई साइड इफेक्ट भी नहीं है।

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असरदार हैं ये तकनीकें -इन तकनीकों के जरिए सफेद दाग पर काबू बहुत कामयाबी से पाया जा सकता है। वहां भी, जहां चमड़ी के नीचे मांस के बिना हड्डियां होती हैं और दवाइयों का असर कम होता है (मसलन उंगलियों पर), ऐसी जगहों पर सफेद दाग पनपने पर उसे दूर करने के लिए यह तकनीक और भी कारगर है। -लेकिन इन तकनीकों का फायदा तभी होता है, जब डॉक्टर ऊपर के इलाज यानी दवाइयों और थेरपी के जरिए सफेद दाग को फैलने से रोक लें। दवाइयों के जरिए सफेद दाग को बढ़ने से रोकने में करीब साल भर लग सकता है, इसलिए नई तकनीक से इलाज की शुरुआत के लिए एक साल का यह वक्त बहुत अहम है। -इन तकनीकों की खास बात यह है कि इनमें कोई टांका नहीं लगता, न ही डायरेक्ट स्किन ग्राफ्टिंग की जाती है। ये सफेद दाग से प्रभावित शरीर के बड़े हिस्से को भी कम वक्त में कवर कर सकती हैं।

 

आयुर्वेद -आयुर्वेद मानता है कि सफेद दाग उन बीमारियों में से है, जिनके होने के कारणों के बारे अब भी बहुत कुछ पता नहीं किया जा सका है। -देश की रक्षा अनुसंधान विकास संस्थान(DRDO) ने सफेद दाग के निदान के लिए आयुर्वेद में रिसर्च को बढ़ावा दिया, जिसका नतीजा है ल्यूकोस्किन (lokoskin)। -ल्यूकोस्किन को तैयार करने में जिन जड़ी-बूटियों का इस्तेमाल किया जाता है, वे हैं: विषनाग, बाकुची, कौंच, मंडूकपणीर्, अर्क और एलोविरा। -ल्यूकोस्किन ओरल लिक्विड और ऑइन्टमेंट, दोनों रूप में मौजूद है। ओरल लिक्विड का फायदा यह है कि इससे नए सफेद दाग नहीं बनते, शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है और स्ट्रेस में कमी आती है, जबकि ऑइन्टमेंट से मौजूदा सफेद दाग ठीक होते हैं। -ल्यूकोस्किन के अच्छे नतीजे तीन महीने में दिखने लगते हैं, जबकि पूरी तरह ठीक होने में दो साल तक का वक्त लग सकता है। -लिक्विड और ऑइन्टमेंट पर एक महीने का खर्च करीब 700 रुपए बैठता है।

हिदायतें आयुर्वेद मानता है कि सफेद दाग का ठीक होना इस बात पर बहुत हद तक निर्भर करता है कि आप कुछ जरूरी हिदायतों और खान-पान को लेकर सतर्क रहें। आइए जानें कि क्या हैं हिदायतें, जिनसे आप फायदा पा सकते हैं:

क्या करें -तांबे के बर्तन में पानी को 8 घंटे रखने के बाद पीएं। -हरी पत्तेदार सब्जियां, गाजर, लौकी, सोयाबीन, दालें ज्यादा खाएं। -पेट में कीड़ा न हो, लीवर दुरुस्त काम करे, इसकी जांच कराएं और डॉक्टर की सलाह के मुताबिक दवा लें। -30 से 50 ग्राम भीगे हुए काले चने और 3 से 4 बादाम हर रोज खाएं। -ताजा गिलोय या एलोविरा जूस पीएं। इससे इम्यूनिटी बढ़ती है।क्या न करें -खट्टी चीजें जैस नीबू, संतरा, आम, अंगूर, टमाटर, आंवला, अचार, दही, लस्सी, मिर्च, मैदा, उड़द दाल न खाएं। -मांसाहार और फास्ट फूड कम खाएं। -सॉफ्ट डिंक्स के सेवन से बचें। -तेज केमिकल वाले साबुन और डिटर्जेंट का इस्तेमाल न करें। -पर्फ्यूम, डियोड्रेंट, हेयर डाई, पेस्टिसाइड को शरीर को सीधे संपर्क में आने से बचाएं। -नमक, मूली और मांस के साथ दूध न पीएं।

 

होम्योपैथी -एक बार सफेद दाग होने पर इसके फैलने की आशंका बनी रहती है। होम्योपैथी इसलिए इसके सिस्टमैटिक इलाज पर जोर देती है यानी इलाज सही कारण के आधार पर हो और पूरा हो। -जान लेना जरूरी है कि इलाज में अमूमन 2 से 3 साल तक का समय लगता है और होम्योपैथी से 100 में से 70 मामलों में सफेद दाग ठीक होते पाया गया है।

क्या है इलाज अगर सफेद दाग ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर की वजह से हुआ है तो शरीर के बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ाकर इलाज शुरू किया जाता है। ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर के कई कारणों में से एक स्ट्रेस और इमोशनल सेट बैक भी हो सकता है। इसके लिए जो दवाइयां दी जाती हैं, वे हैं:

वेब डेस्क IBC24

 
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