डोनाल्ड ट्रंप की जगह बाइडन! भारत के साथ रिश्तों पर क्या होगा असर? | Biden replaced Donald Trump! What will be the effect on relations with India?

डोनाल्ड ट्रंप की जगह बाइडन! भारत के साथ रिश्तों पर क्या होगा असर?

डोनाल्ड ट्रंप की जगह बाइडन! भारत के साथ रिश्तों पर क्या होगा असर?

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:45 PM IST, Published Date : November 20, 2020/7:48 am IST

वाशिंगटन। अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के व्हाइट हाउस में होने के बाद इसका भारत और अमेरिका के रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा? ये सवाल राजनीतिक गलियारे में इन दिनों खूब चल पड़ा है। विश्लेषकों के अनुसार दोनों देश कारोबारी स्तर पर बीते दो दशक में इतने क़रीब आ चुके हैं कि वहाँ से पीछे नहीं हटा जा सकता। ऐसी ही चर्चाओं के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते मंगलवार को जो बाइडन से फ़ोन पर बात की।

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पीएम ने इसकी जानकारी अपने ट्वीट के माध्यम से दी। नरेंद्र मोदी ने लिखा, “फ़ोन पर बाइडन को बधाई दी, हमने भारत-अमरीकी रणनीतिक साझेदारी के प्रति प्रतिबद्धता ज़ाहिर की और हमारी साझी प्राथमिकता वाले मुद्दों पर बातचीत की- इसमें कोविड- 19 महामारी, जलवायु परिवर्तन, और इंडो पैसिफ़िक रीजन में आपसी सहयोग की बात शामिल है।”भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिका की नव-निर्वाचित उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से भी बात की।

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मौजूदा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से पीएम नरेंद्र मोदी के रिश्ते काफ़ी मधुर थे और इसको देखते हुए क़यास लगाए जा रहे हैं कि बाइडन के साथ नरेंद्र मोदी के रिश्ते कहीं ज़्यादा औपचारिकता भरे होंगे। जो बाइडन और कमला हैरिसस की जोड़ी के हाथों में अमेरिकी सत्ता आने के बाद से अमेरिका और भारत के रिश्ते कितने प्रभावित होंगे, इस मुद्दे पर इंडो अमेरिकन फ्रेंडशिप एसोसिएशन की ओर से एक वर्चुअल सेमिनार का आयोजन किया गया। इस चर्चा में इंडो अमेरिकन फ्रेंडशिप एसोसिएशन के संस्थापक अध्यक्ष एवं पूर्व राजनयिक सुरेंद्र कुमार ने कहा, “बाइडन-हैरिस के नेतृत्व में अमेरिका और भारत का संबंध बेहतर होगा। स्टाइल भले ही बदलेगा, लेकिन मूल रूप से संबंध बेहतर होगा। आपसी कारोबार बढ़ेगा लेकिन एक बदलाव तो यह होगा कि अब अमेरिका की विदेश नीति से जुड़ा फ़ैसला ट्वविटर पर नहीं मिलेगा।”

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वहीं पूर्व राजनयिक रोनेन सेन ने भी दोनों देशों के आपसी संबंध बेहतर होने की उम्मीद जताई, रोनेन सेन ने कहा, “मेरे ख्याल से बाइडन विदेश नीति के मामले में उन्ही चीज़ों को आगे बढ़ाएंगे जो डोनाल्ड ट्रंप के समय में चल रहे थे, हो सकता है कि तौर तरीक़ों में थोड़ा बदलाव हो लेकिन कमोबेश चीज़ें वैसी ही रहेंगी।” रोनेन सेन को अपने कार्यकाल में जार्ज बुश और बराक ओबामा और जो बाइडन के साथ कई बार मिलने का मौक़ा मिला लेकिन डोनाल्ड ट्रंप से वे महज़ एक बार ही मिले। लेकिन उन्हें लगता है कि डोनाल्ड ट्रंप के समय में अमेरिका की जो विदेश नीति रही है, बाइडन उसे ही आगे बढ़ाएँगे क्योंकि बीते दो दशकों से अमेरिका की विदेश नीतियों में कोई बदलाव नहीं हो रहा है।

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भारत और अमेरिका के आपसी संबंध कैसे होंगे, इसे चीन-अमेरिकी संबंधों से भी जोड़कर देखा जा रहा है। इस पहलू पर रोनेन सेन का मानना है, ‘भारत की इस पहलू पर नज़र होगी, अमेरिका चीन के साथ प्रतियोगिता भी कर रहा है और उसे काउंटर भी कर रहा है, लेकिन संघर्ष की स्थिति नहीं होगी। वहीं जियो पॉलिटिकल नज़र से भारत भी अमेरिका के लिए अहम बना रहेगा लेकिन चीन के मामले पर वह हमारे क्षेत्रीय दावे पर साथ नहीं देंगे और ना ही हमारे लिए सेना की तैनाती करेंगे।”हालाँकि रोनेन सेन का मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच रक्षा क्षेत्र में आपसी सहयोग बढ़ सकता है। उनके मुताबिक़ बीते चार साल में इस दौरान काफ़ी प्रगति हुई है लेकिन अभी भी काफ़ी चीज़ें लंबित हैं, 2005 के दोनों देशों के बीच हुए समझौते का पूरी तरह पालन नहीं किया गया, 1987 से दोनों देशों के बीच रक्षा क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की शुरुआत हुई थी।

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वैसे रक्षा मामलों में भारत अमेरिका के सबसे नज़दीकी सहयोगी देशों में शामिल है। मेजर जनरल अशोक मेहता के मुताबिक़ भारत और अमेरिका का मौजूदा संबंध 1970 के दशक के भारत-सोवियत संघ की दोस्ती से भी बेहतर स्थिति में पहुँच गई है, वे बताते हैं कि 1975 में भारत और अमरीका के बीच महज एक सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रम संचालित होता था और आज की तारीख में दोनों देश साल भर में 300 सैन्य अभ्यास एक साथ करते हैं। मेजर जनरल अशोक मेहता कहते हैं, “डिफ़ेंस टेक्नॉलॉजी में अमेरिका के साथ भारत के संबंध बेहतर हुए हैं लेकिन अभी भी दोनों देशों के बीच खरीदार और विक्रेता की स्थिति बनी हुई है। सैन्य तकनीक के ट्रांसफ़र और मेक इन इंडिया की दिशा में कोई काम नहीं हुआ है। बाइडन के कार्यकाल के दौरान भारत को इस दिशा में काम करना चाहिए।” मेजर मेहता के मुताबिक़ अभी भी भारत के सैन्य उपकरणों का 80 प्रतिशत हिस्सा रूसी मॉडल पर आधारित है, रूस से आयातित है, अमरीका इस स्थिति में बदलाव चाहेगा। इसके अलावा बाइडन चीन के सामने एक मज़बूत भारत चाहते होंगे लिहाज़ा भारत को तकनीक के ट्रांसफ़र के लिए ज़ोर देना चाहिए।

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इसराइल, फ़्रांस और अमरीका में भारत के राजदूत रहे अरुण कुमार सिंह के मुताबिक जो बाइडन-कमला हैरिस प्रशासन की पाकिस्तान के साथ रणनीति वैसी ही रहेगी जैसी कि डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन के वक़्त में थी। अरूण कुमार सिंह कहते हैं, “डोनाल्ड ट्रंप ने कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश भी की थी, लेकिन बाइडन ऐसा नहीं करेंगे क्योंकि वे भारत की स्थिति को समझते हैं, चीन के साथ भी बाइडन-हैरिस का रिश्ता वैसा ही रहेगा जैसा डोनाल्ड ट्रंप के समय में था लेकिन टोन ज़रूर बदलेगा।” अरुण सिंह के मुताबिक़, ‘रूस के बारे में अमरीका में धारणा है कि 2016 में सोशल मीडिया के ज़रिए रूस ने डोनाल्ड ट्रंप की मदद की थी, रूस के साथ बाइडन के रिश्ते उतने मधुर नहीं रहेंगे, हालाँकि ट्रंप ने कई यूरोपीय देशों की आलोचना की, नैटो की आलोचना की। लेकिन बाइडन यूरोप के साथ अपने रिश्ते बेहतर रखेंगे, इसकी झलक इससे भी मिलती है कि उन्होंने चुनाव में जीत हासिल करने के बाद सबसे पहले फोन ब्रिटेन, फ़्रांस और जर्मनी के प्रीमियर को किए। वे चीन के ख़िलाफ़ यूरोपीय देशों को अपने साथ लेने की कोशिश करेंगे।’

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‘ईरान के साथ बाइडन के लिए मुश्किल होगी, वे डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों पर तो नहीं चलेंगे लेकिन नए समझौते करना जितना पीछे भी नहीं जाएँगे, ऐसे में लगता है कि वे मौजूदा समझौते में ही संशोधन करेंगे। इसराइल के साथ बाइडन ट्रंप जितनी गर्मजोशी नहीं दिखाएँगे।’ ये कयास लगाए जा रहे हैं कि डोनाल्ड ट्रंप की तुलना में बाइडन वीजा संबंधी प्रावधानों को लेकर कम सख़्त होंगे, यानी कुशल और दक्ष कामगारों के लिए अमरीका के दरवाज़े बंद नहीं होंगे, हालाँकि यह काफी हद तक अमेरिका की अपनी घरेलू परिस्थितियों पर निर्भर करेगा। इसी साल 15 अगस्त को बाइडन ने अपने संबोधन में भारतीय अमेरीकी लोगों के साथ खड़े होने की बात कही थी।  अरूण कुमार सिंह कहते हैं, “उम्मीद की जा सकती है कि बाइडन-हैरिस प्रशासन में कहीं ज़्यादा भारतीय अमेरीकियों को जगह मिलेगी।”

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लेकिन इस सब के बीच माना जा रहा है कि जो बाइडन और कमला हैरिस प्रशासन की प्राथमिकता कोविड की समस्या के निदान पर होगी और वे भारत सहित दुनिया के तमाम देशों से सहयोग बढ़ाएँगे, एक कारगर वैक्सीन एलायंस बनाने की ओर उनका ध्यान होगा, इसके बाद उनका ध्यान अर्थव्यवस्था की रिकवरी पर होगा और भारत को उसमें अपनी भूमिका देखनी होगी। वैसे डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी के आपसी कैमेस्ट्री के बावजूद हक़ीक़त यही रही है कि ट्रेड के मामले में भारत के साथ अमरीका के संबंध बहुत आगे नहीं बढ़ पाए। रोनेन सेन कहते हैं, “भारत को अमेरिका से एफ़टीए यानी फ़्री ट्रेड एग्रीमेंट का दर्जा नहीं मिलेगा। जून, 2019 में जेनरल सिस्टम ऑफ़ प्रेफ़रेंस की लिस्ट से बाहर होने के बाद, भारत को लिस्ट में फिर से जगह भले मिल चुकी हो लेकिन अभी भी अमेरिका जो भारत से सामान आयात करता है उसमें महज 10 प्रतिशत हिस्से को ही ड्यूटी फ्री कैटगरी में रखा जाता है, इसे बढ़ाने की ज़रूरत है।”

 
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