फेसब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों पर डॉक्टर ही नहीं कर पाते यकीन |

फेसब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों पर डॉक्टर ही नहीं कर पाते यकीन

फेसब्लाइंडनेस से पीड़ित लोगों पर डॉक्टर ही नहीं कर पाते यकीन

: , March 25, 2023 / 02:26 PM IST

(एडविन बर्न्स, मनोविज्ञान में वरिष्ठ व्याख्याता, एज हिल विश्वविद्यालय)

ऑर्मस्कर्क (ब्रिटेन), 25 मार्च (द कन्वरसेशन) कल्पना करिए कि जिंदगी कैसी होगी अगर आप अपने परिवार तथा दोस्तों को तब तक पहचान नहीं पाते जब तक वे आपको न बताए कि वे कौन हैं। अब कल्पना करिए कि कोई आपकी बात पर यकीन नहीं करेगा , बल्कि आपका डॉक्टर तक आप पर विश्वास नहीं करेगा और कहेगा कि हर कोई कभी कभार नाम भूल जाता है।

हाल के दो अध्ययन से पता चलता है कि यह ‘‘डेवलेपमेंटल प्रोसोपैग्नोसिया’’ नामक मस्तिष्क विकार से जूझने वाले लोगों की आम समस्या है। इस बीमारी को अनौपचारिक रूप से ‘फेसब्लाइंडनेस’ भी कहते हैं यानी ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति को लोगों के चेहरे पहचानने में दिक्कत होती है।

कोई भी पक्के तौर पर यह नहीं बताता कि लोगों को यह बीमारी क्यों होती है लेकिन यह पीढ़ी दर पीढ़ी हो सकती है जिससे पता चलता है कि यह आनुवंशिक हो सकती है। ऐसा अनुमान है कि दो-तीन प्रतिशत वयस्क आबादी इससे पीड़ित हो सकती है।

दिसंबर 2022 में प्रकाशित एक अध्ययन एज हिल विश्वविद्यालय में किया गया। हमारे नतीषों से पता चलता है कि फेसब्लाइंडनेस से पीड़ित 85 प्रतिशत लोग अगर पारंपरिक पद्धति अपनाते हैं तो उनमें बीमारी का पता नहीं चलेगा।

उदाहरण के लिए अध्ययन में भाग लेने वाले लोगों ने यदि अपने डॉक्टर से शिकायत की कि वे अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों को पहचान नहीं पा रहे हैं तो उन्हें अक्सर कहा जाता है कि यह सामान्य बात है। इसका उन पर भयानक असर पड़ सकता है जिससे वह परेशान हो सकते हैं।

इस बीमारी से जूझ रहे लोग जब चेहरे देखते हैं तो उनमें एटिपिकल न्यूरल प्रतिक्रिया होती है।

इससे पता चलता है कि जब वे चेहरे देखते हैं तो उनका मस्तिष्क उस तरीके से काम नहीं करता जैसे कि उसे करना चाहिए। अगर आप फेसब्लाइंडनेस से पीड़ित किसी व्यक्ति से मिले तो उन्हें संकेत दें कि आप कौन हैं और उनसे कहां मिले थे। थोड़ा संयम काफी फायदेमंद हो सकता है।

द कन्वरसेशन

गोला नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)