G-20 सम्मेलन में सनातन की सफल ब्रांडिंग करके मोदी सरकार ने जीती दोहरी बाजी |

G-20 सम्मेलन में सनातन की सफल ब्रांडिंग करके मोदी सरकार ने जीती दोहरी बाजी

सनातन विरोधी सिसायत के इसी साये में G-20 का सम्मेलन हुआ। सम्मेलन बेशक अंतर्राष्ट्रीय था, लेकिन मैनेजमेंट के जरिए इवेंट्स का राजनीतिक लाभ उठाने का कौशल रखने वाली मोदी सरकार ने इसका इस्तेमाल अपने राष्ट्रीय राजनीतिक हित में भी बखूबी कर लिया

Edited By :   Modified Date:  October 19, 2023 / 09:40 AM IST, Published Date : September 12, 2023/11:38 am IST

G-20 समिट का आयोजन हालांकि अंतर्राष्ट्रीय मसलों पर मंथन करने के उद्देश्य से किया गया था लेकिन इसके सफल आयोजन ने भारत की राजनीति को भी गहरा प्रभावित किया है। भाजपा अपनी सरकार के इस आयोजन के जरिए वो सब कुछ हासिल करने में सफल रही है जिसे वो अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित करके चुनावी लाभ उठाने की कोशिश करेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में भारत के ‘विश्वगुरू’ बनने की संभावना को भाजपा अपने राजनीतिक लाभ के लिए भुनाने का मौका नहीं चूकेगी। प्रतीकात्मक राजनीति में महारत रखने वाली मोदी सरकार ने G-20 सम्मेलन के जरिए ‘सनातन के संरक्षक’ की अपनी छवि को और मजबूत किया है। भाजपा का G-20 समिट के जरिए अर्जित किया गया ये लाभांश सनातन को लेकर देश में चल रही सियासत के मद्देनजर उसकी राजनीतिक संभावनाओं को मजबूत बनाने में काफी मददगार साबित होगा।

इस बात पर गौर फरमाइए कि G20 का ये आयोजन जिस समय हो रहा था, उस समय देश में सनातन को लेकर सियासत गर्म थी। तमिलनाडू के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन ने सनातन को डेंगू और कोरोना जैसी बीमारियों से तुलना करके इसके उन्मूलन का आह्वान करके जिस बहस की शुरुआत की थी, उसे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के बेटे प्रियांक खरगे ने समर्थन देकर जैसे भाजपा को उसका मनचाहा हथियार थमा दिया। बाद में डीएमके के नेता ए राजा ने एक कदम आगे बढ़ते हुए सनातन को HIV और कोढ़ तक बता दिया। दक्षिण से उठी सनातन विरोध की ये जहरीली हवा देश के बाकी हिस्सों में भी पहुंचते देर नहीं लगी। मोदी विरोधी I.N.D.I.A.में शामिल RJD के नेता जगदानंद ने सनातन के प्रतीक ‘तिलक’ को निशाने पर ले लिया। इससे पहले सनातन के प्रति दुर्भावना की पराकाष्ठा उस वक्त भी दिखी थी जब सुपर स्टार रजनीकांत ने योगी आदित्यनाथ के पैर छूकर उनका आशीर्वाद मांगा। इस सनातनी संस्कार के लिए रजनीकांत को एक खास विचारधारा वालों की काफी ट्रोलिंग भी झेलनी पड़ी।

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सनातन विरोधी सिसायत के इसी साये में G-20 का सम्मेलन हुआ। सम्मेलन बेशक अंतर्राष्ट्रीय था, लेकिन मैनेजमेंट के जरिए इवेंट्स का राजनीतिक लाभ उठाने का कौशल रखने वाली मोदी सरकार ने इसका इस्तेमाल अपने राष्ट्रीय राजनीतिक हित में भी बखूबी कर लिया। मोदी सरकार ने G-20 समिट के जरिए ना केवल अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य पर सनातन की सफल ब्रॉन्डिंग की बल्कि इसके इसके माध्यम से देश के सनातन विरोधियों को भी करारा जवाब दिया। मोदी सरकार ने G-20 समिट में सनातन से जुड़े प्रतीकों का कुशलतापूर्वक प्रयोग करके सनातन विरोधियों को कुढ़ने और जलने-भुनने के लिए मजबूर कर दिया।

मोदी सरकार ने अपनी सनातनी छवि को साधने की शुरुआत इंडिया बनाम भारत के साथ की। निमंत्रण पत्र से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने लगी पट्टिका तक के हर उस अवसर पर ‘भारत’ शब्द का इस्तेमाल किया गया, जो देश की पहचान के साथ जुड़ा था। G-20 के लोगो में INDIA के साथ ही भारत तो लिखा ही था, साथ ही उसमें कमल फूल भी चिन्हिंत था। संदेश स्पष्ट था कि देश की ग्लोबल पहचान अब ‘इंडिया’ के रूप में नहीं बल्कि सनातन काल से चले आ रहे ‘भारत’ नाम से होगी। वैसे देखा जाए तो समिट के सनातनी स्वरूप की तैयारी उस समय से शुरू हो चुकी थी, जब सनातन के विरोध को लेकर देश में कोई सियासी हलचल भी नहीं थी। बात चाहे आयोजन स्थल का नाम भारत मंडपम रखे जाने की हो, मंडपम की दीवारों पर ब्रह्मांड के 5 मूल तत्वों, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को दर्शाने वाले ‘पंच महाभूत’ की हो, वॉल ऑफ डेमोक्रेसी में दर्शाए गए सनातन सभ्यता के 5 हजार वर्ष के लोकतांत्रिक इतिहास की हो या फिर 17वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लिखी गई घेरंड संहिता में वर्णित 32 योग आसनों की हो, ये सब सनातन को चल रही मौजूदा तनातनी से सब काफी पहले ही किया जा चुका था। खास बात ये रही कि जिस दक्षिण से सनातन के उन्मूलन की आवाज उठी वहीं के प्रतीक नटराजन की भव्य मूर्ति मंडपम के सामने स्थापित थी।

सनातन की ब्रांडिंग पूरे प्रोफेशनल तरीके से की गई। फोटोसेशन के लिए बैकग्राउंड का चयन बहुत सोच-समझ कर किया गया। भारत मंडपम में विदेशी राजनयिकों और राष्ट्रप्रमुखों का स्वागत करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पीछे बने कोणार्क चक्र की तस्वीरें देश-दुनिया भर में छपीं। इसके जरिए मोदी सरकार ने 13वीं शताब्दी में निर्मित कोणार्क के सूर्य मंदिर की ग्लोबल पहचान दिला दी। फोटोसेशन की जिस दूसरी तस्वीर ने सारी दुनिया का ध्यान खींचा वो नालंदा विश्वविद्यालय की थी। नालंदा विश्वविद्यालय के साथ आक्रांता बख्तियार खिलजी की स्मृति के जुड़े होने के भी गहरे मायने हैं। इस तस्वीर ने दुनिया को ध्यान दिलाया गया कि भारत कभी विश्वगुरू था, जहां शिक्षा लेने के लिए देश-विदेश से लोग आते थे। इस तस्वीर के जरिए भारत ये संदेश देने में सफल रहा कि लुटेरे आक्रांताओं की वजह से भारत ने ‘विश्वगुरू’ के जिस ओहदे को खो दिया था, वो उसे दोबारा पाने के लिए प्रयासरत है।

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G-20 समिट के थीम ‘वन अर्थ, वन फैमली, वन फ्यूचर’ का स्रोत महा उपनिषद् का ‘वसुधैव कुटुंबकम’ रहा। उल्लेखनीय यह भी है कि आयोजन स्थल से दुनिया के सात अजूबों में शुमार ताजमहल समेत वो सारे प्रतीक नदारद थे, जिनसे कभी देश की पहचान कराई जाती थी। यही नहीं बल्कि इस बात का भी ध्यान रखा गया कि खान-पान, वेश भूषा, नृत्य-संगीत-कला आदि में भी केवल सनातनी संस्कृति ही झलक दिखे। यही वजह रही कि राष्ट्रपति की ओर से दिए गए डिनर में श्रीअन्न से बना शाकाहारी भोजन परोसा गया। यहां तक कि राउंड डिनर टेबल का नामकरण भी धार्मिक महत्व की नदियों गंगा, कृष्णा, यमुना, ब्रह्मपुत्र पर किया गया। नृत्य-संगीत में भी सनातनी संस्कृति समावेश दिखा। अवसर चाहे राष्ट्रध्यक्षों के आगमन पर प्रस्तुत किए गए स्वागत नृत्य का रहा हो या फिर मेहमानों के मनोरंजन के लिए प्रस्तुत किए गए वाद्य प्रस्तुति का, इसमें केवल सनातनी संगीत विधा का ही प्रयोग किया गया।

कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी G-20 आयोजन के जरिए एक तीर से दो निशाने साधने में कामयाब रहे। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में भारत का दबदबा तो स्थापित किया ही, साथ ही सनातन की ब्रांडिंग के जरिए विरोधियों को करारा जवाब देकर राष्ट्रीय राजनीति में भी गहरा प्रभाव छोड़ा। G-20 ने मोदी विरोधी गठबंधन I.N.D.I.A. के घटक दलों के अंतर्विरोधों और मतभेदों को भी एक बार फिर सतह पर ला दिया। कांग्रेस और कुछ दीगर पार्टियों के मुख्यमंत्रियों ने जहां राष्ट्रपति की ओर से दिए गए डिनर का अघोषित बहिष्कार करने का नासमझी भरा कदम उठाया वहीं ममता बनर्जी, नीतीश कुमार, शिबू सोरेन, एम के स्टालिन जैसे मुख्यमंत्रियों ने डिनर में शामिल होकर I.N.D.I.A. में नये विवाद को जन्म दे दिया। कांगेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता बनर्जी के डिनर पर शिरकत करने पर जैसी तीखी प्रतिक्रिया दी उससे साफ जाहिर हो गया कि पश्चिम बंगाल में विपक्षी एकता का क्या हश्र होना है। लेकिन दिलचस्प बात ये रही कि इधर अधीर बाबू भोज में शामिल होने पर ममता दीदी पर आग बबूला हो रहे थे, उधर उन्हीं के पार्टी के हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने डिनर में शामिल होकर कांग्रेस के विरोधाभासी को उजागर कर दिया। वहीं कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने भी G-20 की कूटनीतिक सफलता के लिए मोदी सरकार की तारीफ करके कांग्रेस को मुश्किल में डाल दिया है। इधर नीतीश कुमार का डिनर में शामिल होना भी उनके सहयोगियों को रास नहीं आया है। पलटूराम की छवि रखने वाले नीतीश के इस कदम को उनके विरोधी एनडीए में वापसी का रास्ता खुला रखने की पैंतरेबाजी बता कर तंज कसने से नहीं चूक रहे हैं।

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G-20 समिट भले समाप्त हो गया हो लेकिन उसका राष्ट्रीय राजनीति में प्रभाव अभी बाकी है। भाजपा इस आयोजन का राजनीतिक लाभ लेने का कोई मौका नहीं छोड़ने वाली। भाजपा की कोशिश मोदी विरोधी गठबंधन I.N.D.I.A.को सनातन विरोधी मानसिकता वाले दलों का गठबंधन साबित करने की रहेगी। 18 सितंबर से संसद का 5 दिवसीय विशेष सत्र शुरू होने वाला है। जाहिर तौर पर सरकार इस सत्र में G-20 सफल आयोजन पर अपनी पीठ तो थपथपाएगी ही साथ ही वो विपक्षियों को सनातन विरोधी ठहराने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ेगी। इस मौके पर विपक्षियों का क्या रुख रहता है, वो देखने वाली बात होगी। फिलहाल अब तक तो कांग्रेस और उसके सहयोगियों का रुख जलने-कुढ़ने वाला ही नजर आया है। प्रियंका गांधी ने राजस्थान की रैली में G20 सम्मेलन को ‘इनका’ सम्मेलन निरूपित करके और उधर राहुल ने यहां से 6500 किलोमीटर दूर पेरिस में भाजपा और आरएसएस की हिंदुत्ववादी विचारधारा पर सवाल खड़े करके भाजपा को कांग्रेस की प्रतिक्रिया को ‘खिसियाहट’ साबित करने का मौका तो दे ही दिया है।

– लेखक IBC24 में डिप्टी एडिटर हैं।

 
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