यूरिया घोटाला मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट खारिज |

यूरिया घोटाला मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट खारिज

यूरिया घोटाला मामले में सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट खारिज

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:51 PM IST, Published Date : April 3, 2022/4:29 pm IST

(अभिषेक शुक्ला)

नयी दिल्ली, तीन अप्रैल (भाषा) केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को उस समय किरकिरी का सामना करना पड़ा, जब एक विशेष अदालत ने 1995 के यूरिया घोटाले से संबंधित एक मामले में सीबीआई द्वारा 22 साल की देरी से दायर क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर दिया। अदालत ने जांच एजेंसी के निदेशक से यह सुनिश्चित करने को कहा कि ‘ऐसा घोर अन्याय’ दोबारा न हो।

विशेष न्यायाधीश सुरिंदर एस राठी ने हाल ही में पारित आदेश में कहा कि मामले में सीबीआई द्वारा आखिरी बार तफ्तीश 1999 में की गई थी और यह स्पष्ट है कि जांच एजेंसी ने अब तक रिपोर्ट दबाए रखी।

उन्होंने सीबीआई की प्रतिष्ठित भ्रष्टाचार निरोधक इकाई 1 के संयुक्त निदेशक को मामले की जांच करने और अपनी रिपोर्ट सौंपने का आदेश दिया।

न्यायमूर्ति राठी ने कहा, “जाहिर है कि जब वर्तमान अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी, तब जांच अधिकारी और संबंधित पुलिस अधीक्षक (एसपी) ने 22 साल की इस देरी के बारे में चर्चा करना जरूरी नहीं समझा, जबकि उनके पास इसका मौका था। देरी की वजहें समझाने में जानबूझकर साधी गई ऐसी चुप्पी कानूनी रूप से अस्वीकार्य है।”

उन्होंने कहा, “यह स्पष्ट रूप से इस अदालत के लिए चिंता का सबब है और जांच एजेंसी के प्रमुख यानी सीबीआई निदेशक के लिए भी फिक्र का कारण होना चाहिए।”

न्यायमूर्ति राठी ने कहा, “सीबीआई निदेशक इस मामले को देखेंगे और जरूरी कार्रवाई करेंगे। वह यह सुनिश्चित करने के लिए उचित कदम उठाएंगे कि ‘ऐसा घोर अन्याय’ दोबारा न हो।”

उन्होंने कहा, “यह सीबीआई का मुकदमा नहीं है कि 1999 से 2021 तक इसमें कोई जांच की जा रही थी। ऐसे में यह समझ से परे है कि उसी अंतिम रिपोर्ट को इतने समय तक क्यों दबाए रखा गया था और इसका क्या उद्देश्य था।”

सीबीआई ने 19 मई 1996 को यूरिया घोटाला मामला दर्ज किया था। आरोपियों पर एक आपराधिक साजिश के तहत नेशनल फर्टिलाइजर लिमिटेड (एनएफएल) को 133 करोड़ रुपये की चपत लगाने का आरोप था।

मुख्य मामले में एनएफएल के कई अधिकारियों, कारोबारियों और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव के भतीजे बी संजीव राव को दोषी ठहराया गया था।

सीबीआई ने जिस मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की थी, वह चार जून 1997 को दर्ज किया गया था और एक लाख मीट्रिक टन यूरिया की आपूर्ति से संबंधित थी।

जांच एजेंसी ने अपनी प्राथमिकी में एनएफएल के पूर्व प्रबंध निदेशक सीके रामकृष्णन और कार्यकारी निदेशक डीएस कंवर, हैदराबाद स्थित साईं कृष्णा इंपेक्स के मुख्य कार्यकारी एम संबाशिव राव व अमेरिका स्थित अलबामा इंटरनेशनल इंक के एस नुथी को नामजद किया था।

सीबीआई ने जनवरी 2021 में इन आरोपियों के खिलाफ अपनी क्लोजर रिपोर्ट दाखिल करते हुए कहा था कि मामले में कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि रामकृष्णन और कंवर पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने संजीव राव व नुथी को बार-बार रियायतें दीं, जो यूरिया की आपूर्ति करने में नाकाम रहे थे।

नियमों के तहत अनुबंध को पूरा करने में नाकाम रहने के चलते एनएफएल के पक्ष में जारी प्रदर्शन गारंटी (पीजी) बॉन्ड को जब्त कर लिया जाना चाहिए था।

विशेष अदालत ने कहा कि लेटर ऑफ इंटेंट (एलओआई) के तहत बार-बार यूरिया की आपूर्ति करने में नाकाम रहने के कारण कुल 3.01 लाख अमेरिकी डॉलर (मौजूदा कीमत 2.28 करोड़ रुपये से अधिक) मूल्य के दो फीसदी पीजी बॉन्ड को जब्त करने के बजाय कंवर ने इन्हें आठ जनवरी 1996 को नुथी को वापस दे दिया, जिसके चलते एनएफएल को तीसरे पक्ष से यूरिया खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ा।

अभियोजन पक्ष के गवाह और एनएफएल के एक अतिरिक्त प्रबंधक के बयान का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि संजीव राव ने संबाशिव राव को रामकृष्णन से मिलवाया था।

अदालत ने सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा, “मुझे जांच अधिकारी और सीबीआई के एसपी द्वारा निकाले गए निष्कर्ष में कोई विश्वसनीयता नजर नहीं आती है, जिसके तहत कहा गया है कि सरकार को कोई आर्थिक नुकसान नहीं हुआ है। 1995 में 3.01 लाख अमेरिकी डॉलर मूल्य के पीजी बॉन्ड एक मूल्यवान संपत्ति थे।”

विशेष अदालत के मुताबिक, चारों को आरोपियों के तौर पर तलब किए जाने के लिए पर्याप्त सामग्री थी।

केस फाइल पर नजर दौड़ाने के बाद विशेष न्यायाधीश ने कहा कि मामले में आखिरी जांच 11 मार्च 1999 को की गई थी और इसके बाद 17 मार्च 1999 को अंतिम रिपोर्ट का मसौदा तैयार किया गया था।

उन्होंने कहा, “इसके बाद केवल दो केस डायरी तैयार की गईं, जिनमें से आखिरी 12 मई 1999 को बनी थी। जाहिर है कि जांच एजेंसी उसे लेकर बैठी रही और अंतिम रिपोर्ट विशेष न्यायाधीश के समक्ष 12 जनवरी 2021 को यानी 22 साल के लंबे अंतराल के बाद दायर की गई।”

अदालत ने सीबीआई को बुनियादी बातें याद दिलाते हुए कहा कि बाध्यकारी वैधानिक कानून स्पष्ट करते हैं कि जांच एजेंसियां ​​​​अनावश्यक देरी किए बिना समय पर जांच पूरी करने और जांच रिपोर्ट सक्षम अदालत के समक्ष पेश करने के लिए ‘कर्तव्यबद्ध’ हैं।

भाषा पारुल नरेश

नरेश

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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