नयी दिल्ली, छह दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी में निचली अदालतों के लिए और लोक अभियोजकों की भर्ती की जरूरत पर जोर देते हुए बुधवार को कहा कि उनकी संख्या में ‘लगातार कमी’ के कारण वर्तमान लोक अभियोजकों पर विभिन्न अदालतों में काम का अत्यधिक बोझ है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन ने अभियोजकों की कमी को एक ‘‘गंभीर समस्या’’ बताते हुए कहा, ‘‘न्यायाधीश चैम्बर में बैठे हैं और काम नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि अभियोजक दूसरी अदालत में है…अभियोजक जाता है और एक अदालत में जमानत कराता है और फिर दूसरी अदालत में आकर गवाही कराता है।’’
वह दिल्ली सरकार के इस रुख से असहमत थे कि निचली अदालतों में कार्यरत अभियोजकों की संख्या जरूरत से अधिक है।
न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा, ‘कृपया उन्हें (दिल्ली सरकार के वकील को) निचली अदालत जाने के लिए कहें। यह प्रतिदिन की कहानी है। संख्या अधिक नहीं है। संख्या में लगातार गिरावट है।’’
अदालत ने कहा कि लगभग 100 न्यायिक अधिकारियों के अगले साल से काम शुरू करने की उम्मीद है, जो स्वीकृत संख्या से तब भी कम होंगे और इसलिए अधिक अभियोजकों को सेवा में शामिल करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए।
पीठ में न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा भी शामिल थीं। पीठ ने कहा, ‘यह एक गंभीर समस्या है। हमें पर्याप्त संख्या में अभियोजकों की आवश्यकता है।’
उच्च न्यायालय कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था जिसमें दिल्ली में सरकारी अभियोजकों की भर्ती और कामकाज से संबंधित मुद्दों पर स्वत: संज्ञान लेकर शुरू की गई एक याचिका भी शामिल थी।
याचिकाकर्ताओं ने अभियोजकों के वेतनमान में बढ़ोतरी और उन्हें अपना काम करने के लिए आवश्यक सुविधाओं और बुनियादी ढांचे से लैस करने का अनुरोध भी किया है।
केंद्र सरकार के वकील अनिल सोनी ने कहा कि वित्त मंत्रालय सहायक लोक अभियोजकों के वेतनमान में वृद्धि के आदेश को लागू करने पर सहमत हो गया है, जो उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील के नतीजे के अधीन होगा।
अदालत ने दिल्ली सरकार से कहा कि वह वित्त मंत्रालय के फैसले को जितनी जल्दी हो सके लागू करे, अच्छा होगा कि इसे चार सप्ताह के भीतर लागू किया जाए, चाहे शीर्ष अदालत में अपील का परिणाम जो भी हो।
दिल्ली सरकार के वकील संतोष कुमार त्रिपाठी ने कहा कि अभियोजकों की कार्य स्थितियों और उनकी भर्ती से संबंधित मुद्दों के संबंध में सभी कदम उठाए जा रहे हैं।
भाषा अमित प्रशांत
प्रशांत
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