नयी दिल्ली, दो मार्च (भाषा) भारत में पांच साल में पहली स्पेक्ट्रम नीलामी मंगलवार को संपन्न हो गई। इस दौरान विभिन्न दूरसंचार कंपनियों ने 77,814.80 करोड़ रुपये का स्पेक्ट्रम खरीदा। मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस जियो ने दो दिन की नीलामी में 50 प्रतिशत से अधिक स्पेक्ट्रम 57,123 करोड़ रुपये में खरीदा। इससे कंपनी को मोबाइल कॉल और डेटा सिग्नल सेवाओं के लिए अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध हो सकेंगे।
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हालांकि, नीलामी में पेश कुल रेडियो तरंगों में से दूरसंचार कंपनियों ने काफी कम स्पेक्ट्रम खरीदा है। साथ ही स्पेक्ट्रम की खरीद भी आरक्षित मूल्य पर की गई है। इसके बावजूद दूरसंचार विभाग का कहना है कि ये आंकड़े महामारी और दूरसंचार क्षेत्र में दबाव के बीच उसके आंतरिक अनुमान से अधिक रहे हैं।
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कुल राशि में से सरकार से चालू वित्त वर्ष में 19,000 से 20,000 करोड़ रुपये और अगले वित्त वर्ष में 6,000 से 7,000 करोड़ रुपये मिलेंगे। सफल बोलीदाताओं को अग्रिम भुगतान और किस्तों में भुगतान का विकल्प दिया गया है।
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एक अन्य दूरसंचार कंपनी भारतीय एयरटेल ने 18,699 करोड़ रुपये में 355.45 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम खरीदा। सोमवार को 2,250 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की नीलामी शुरू हुई थी। इसका आरक्षित मूल्य करीब चार लाख करोड़ रुपये था।
दूरसंचार सचिव अंशु प्रकाश ने कहा कि दो दिन की नीलामी में 77,814.80 करोड़ रुपये का 855.60 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम खरीदा गया।
रिलायंस जियो ने 57,122.65 करोड़ रुपये का स्पेक्ट्रम खरीदा। वहीं वोडाफोन आइडिया लि. ने 1,993.40 करोड़ रुपये में 11.80 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम खरीदा है।
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नीलामी के दौरान 800 मेगाहर्ट्ज, 900 मेगाहर्ट्ज, 1800 मेगाहर्ट्ज, 2100 मेगाहर्ट्ज और 2300 मेगाहर्ट्ज बैंड में बोलियां आईं। लेकिन 700 और 2500 मेगाहर्ट्ज में कोई बोली नहीं मिली। नीलामी के लिए पेश कुल स्पेक्ट्रम में से 700 मेगाहर्ट्ज बैंड के स्पेक्ट्रम का हिस्सा एक-तिहाई था। 2016 की नीलामी में यह स्पेक्ट्रम बिल्कुल नहीं बिक पाया था।
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प्रकाश ने कहा कि नीलामी के लिए रखे गए कुल स्पेक्ट्रम में से 60 प्रतिशत के लिए बोलियां मिलीं। उन्होंने कहा कि ये बोलियां न्यूनतम मूल्य पर आईं, जो सरकार को स्वीकार्य थीं।
रिलायंस जियो इन्फोकॉम लि. ने कहा कि उसने देशभर में सभी 22 सर्किलों में स्पेक्ट्रम के इस्तेमाल का अधिकार हासिल कर लिया हैं उसने कुल 488.35 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम हासिल किया। इस तरह उसका पास 1,717 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम (अपलिंक और डाउनलिंक) हो गया है।
विश्लेषकों ने कहा कि गीगाहर्ट्ज बैंड से नीचे अन्य स्पेक्ट्रम कम कीमत पर उपलब्ध है। ऐसे में ज्यादातर ऑपरेटर नए स्पेक्ट्रम में निवेश नहीं करना चाहते हैं, क्योंकि ऐसे में उन्हें उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च करना होगा।
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