बस्तर दशहरा के ‘मावली परघाव’ कार्यक्रम में शामिल होंगे सीएम भूपेश बघेल, सोमवार शाम होंगे रवाना | CM Bhupesh Baghel will go Bastar for 'Mawali parghaw' of Bastar Dussehra

बस्तर दशहरा के ‘मावली परघाव’ कार्यक्रम में शामिल होंगे सीएम भूपेश बघेल, सोमवार शाम होंगे रवाना

बस्तर दशहरा के ‘मावली परघाव’ कार्यक्रम में शामिल होंगे सीएम भूपेश बघेल, सोमवार शाम होंगे रवाना

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:20 PM IST, Published Date : October 6, 2019/4:30 pm IST

रायपुर: सीएम भूपेश बघेल 7 अक्टूबर को बस्तर और बेमेतरा प्रवास पर रहेंगे। बेमेतरा जिले के भिभौंरी में जहां सीएम बघेल आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ सत्संग कार्यक्रम और अभिनंदन समारोह में सीएम भूपेश बघेल में शामिल होंगे, वहीं देर शाम जगदलपुर में ‘मावली परघाव’ कार्यक्रम में शामिल होंगे। इसके पश्चात वे रात्रि विश्राम जगदलपुर में करेंगे।

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मिली जानकारी के अनुसार मुख्यमंत्री बघेल 07 अक्टूबर को दोपहर 2 बजे पुलिस ग्राउण्ड भिलाई-03 से हेलीकाप्टर द्वारा प्रस्थान कर 2.25 बजे बेमेतरा जिले के बेरला विकासखण्ड के ग्राम भिभौंरी पहुंचेंगे। वे दोपहर 2.30 बजे से 3.30 बजे तक ग्राम भिभौंरी में आयोजित श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ सत्संग कार्यक्रम और अभिनंदन समारोह में शामिल होंगे। इसके बाद दोपहर 3.35 बजे ग्राम भिभौंरी से हेलीकाप्टर से 4.40 बजे जगदलपुर पहुंचेंगे। उनका जगदलपुर स्थित नमन बस्तर रिसॉर्ट में शाम 5 बजे से 7 बजे तक का समय आरक्षित है। वे शाम 7 बजे से रात्रि 8 बजे तक जगदलपुर में आयोजित ‘‘मावली परघाव’’ पूजा विधान कार्यक्रम में शामिल होंगे। इसके पश्चात् वे रात्रि विश्राम जगदलपुर में करेंगे।

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क्या है मावली परघाव
दरअसल देवी मावली कर्नाटक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिंदक नागवंशीय राजाओं व्दारा उनके बस्तर के शासनकाल में आई थीं। छिंदक नागवंशीय राजाओं ने नौंवीं से चौदहवीं शताब्दी तक बस्तर में शासन किया। इसके बाद चालुक्य राजा अन्नमदेव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को भी अपनी कुलदेवी के रूप में मान्यता दी। मावली देवी का यथोचित सम्मान तथा स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई।

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दंतेवाड़ा और बस्तर की सांस्कृतिक तथा पारंपरिक डोर दशहरा पर्व से बंधी हुई है। कहते हैं मांई दंतेश्वरी के बगैर बस्तर दशहरा अधूरा है। यह सदियों पुरानी परंपरा है कि, मांईजी डोली और छत्र के माध्यम से बस्तर दशहरा में शामिल होती हैं और उसके बाद वापस शक्तिपीठ दंतेवाड़ा में आकर विराजमान हो जाती है। काकतीय राजवंश के राजा अन्नमदेव के कार्यकाल से यह परंपरा प्रारंभ हुई, जो आधुनिक संदर्भों में भी निर्बाध रूप से जारी है।

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