हरतालिका तीज की तिथि, व्रत और पूजन की संपूर्ण विधि.. जानिए | Date of fasting Teej, complete method of fasting and worship

हरतालिका तीज की तिथि, व्रत और पूजन की संपूर्ण विधि.. जानिए

हरतालिका तीज की तिथि, व्रत और पूजन की संपूर्ण विधि.. जानिए

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:58 PM IST, Published Date : August 31, 2019/2:43 am IST

रायपुर। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। इस बार यह व्रत एक सितंबर को किया जाए या दो सितंबर को इसे लेकर महिलाओं में भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

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हरतालिका तीज व्रत के कुछ नियम भी होते हैं। इस तीज के व्रत में जल ग्रहण नहीं किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन जल ग्रहण करने का विधान है। हरतालिका तीज व्रत एक बार करने पर इसे छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत को विधि-विधान से करना चाहिए। इस व्रत में रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए। इसे कुंवारी कन्याएं और सौभाग्यवती स्त्रियां ही कर सकती हैं।

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तृतीया तिथि प्रारंभ- सुबह 8 बजकर 27 मिनट से (1 सितंबर 2019 ) ।
तृतीया तिथि समाप्त- अगले दिन सुबह 4 बजकर 47 मिनट तक (2 सितंबर 2019)।
हरतालिका तीज पूजा मुहूर्त- सुबह 8 बजकर 27 मिनट से 8 बजकर 37 मिनट तक।
प्रदोष काल हरतालिका पूजा मुहूर्त – शाम 6 बजकर 39 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक।

इस दिन माता पार्वती और भगवान शंकर की विधि-विधान से पूजा की जाती है। हरतालिका तीज प्रदोषकाल में किया जाता है। सूर्यास्त के बाद के तीन मुहूर्त को प्रदोषकाल कहा जाता है। यह दिन और रात के मिलन का समय होता है। हरतालिका पूजन के लिए भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत व काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाएं। पूजा स्थल को फूलों से सजाकर एक चौकी रखें और उस चौकी पर केले के पत्ते रखकर भगवान शंकर, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित करें।

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इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए भगवान शिव, माता पार्वती का पूजन करें। सुहाग की पिटारी में सुहाग की सारी वस्तु रखकर माता पार्वती को चढ़ाना इस व्रत की मुख्य परंपरा है। इसमें शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है। यह सुहाग सामग्री सास के चरण स्पर्श करने के बाद ब्राह्मणी और ब्राह्मण को दान देना चाहिए। आरती के बाद सुबह माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।

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