पूर्व सीएम कैलाश जोशी को आज दी जाएगी अंतिम विदाई, जानिए कैसा था उनका सियासी सफरनामा | Former CM Kailash Joshi Passed away

पूर्व सीएम कैलाश जोशी को आज दी जाएगी अंतिम विदाई, जानिए कैसा था उनका सियासी सफरनामा

पूर्व सीएम कैलाश जोशी को आज दी जाएगी अंतिम विदाई, जानिए कैसा था उनका सियासी सफरनामा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 08:03 PM IST, Published Date : November 25, 2019/2:11 am IST

भोपाल: मध्यप्रदेश के पूर्व सीएम कैलाश जोशी का रविवार को 91 साल की उम्र में निधन हो गया। आज उनके पार्थिव शरीर को अंतिम विदाई दी जाएगी। पूर्व मुख्यमंत्री जोशी का अंतिम संस्कार हाटपिपल्या में किया जाएगा। इससे पहले भोपाल स्थित भाजपा कार्यालय में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा। सुबह 9 बजे से ही अं​तिम दर्शन के लिए लोगों का आना शुरू हो जाएगा। बता दें कि जोशी लंबे समय से बिमार चल रहे थे। कैलाश जोशी के निधन पर मध्यप्रदेश सरकार ने 1 दिन का राजकीय शोक घोषित किया है।

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कैलाश जोशी का सियासी सफरनामा
कैलाश जोशी का जन्म 14 जुलाई 1929 को देवास जिले के हाटपीपल्या तहसील में हुआ था। वे जनसंघ की स्थपना 1951 से ही पार्टी से जुड़े हुए थे। अपने सियासी करियर में जोशी ने प्रदेश के कई बड़े दायित्वों को सफलता पूर्वक निर्वहन किया। वे मुख्यमंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर रहते हुए पार्टी और प्रदेश की जिम्मेदारियों में खरे उतरे।

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नगरपालिका के अध्‍यक्ष से सीएम की कुर्सी तक का सफर
कैलाश जोशी 1954 से 1960 तक देवास जिले में जनसंघ के मंत्री रहे। इसके बाद उन्होंने साल 1955 में हाटपीपल्‍या नगरपालिका का चुनाव लड़ा और भारी बहुमत से जीत दर्ज की। इस जीत के बाद जोशी नहीं रूके और वे 1962 से लगातार 7 बार ​बागली विधानसभा सीट से चुनाव जीतते रहे। 1980 में भाजपा का गठन हुआ और जोशी को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपी गई। वे 1984 तक इस पद बने रहे।

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साल 1977 में देश में इमरजेंसी हटा दिया गया था। इसके बाद पूरे देश में चुनाव करवाया गया, जिसमें कांग्रेस औंधे मुंह गिरी। मोरारजी देसाई देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने थे। उन्होंने देश की सभी कांग्रेस सरकारों को बर्खास्त करा दिया था। इसी दौर में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव करवाया गया, जिसमें जनता पार्टी ने 320 में 231 सीटें जीतीं। इसके बाद कई विपक्षी दलों ने जनता पार्टी को समर्थन ​दिया और कैलाश जोशी के नेतृत्व में सरकार का गठन हुआ। इससे पहले वे 1972 से 1977 तक नेता प्रतिपक्ष रहे थे।

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मुख्यमंत्री बने पटवा तो सामने आई जोशी की नाराजगी
साल 1990 में एक बार फिर मध्यप्रदेश में भाजपा को बहुमत मिली, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कैलाश ​जोशी नहीं, बल्कि सुदरलाल पटवा को बैठाया गया। इस बात से जोशी नाराज हो गए और उन्होंने मंत्रिमंडल में शामिल होने से इनकार कर दिया। करीब छह महीने बाद उन्हें मनाकर बिजली मंत्री बनाया गया था। अयोध्या कांड के बाद दिसंबर 1992 में भाजपा सरकार बर्खास्त कर दी गई थी।

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1998 में कांग्रेस के दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। इस दौरान चुनाव में भाजपा ने दिग्विजय को उनके गढ़ में घेरने के लिए कैलाश जोशी को उतारा था। यहां से दिग्विजय के भाई लक्ष्मण सिंह कांग्रेस प्रत्याशी थे। कैलाश जोशी यह चुनाव 56 हज़ार वोट से हार गए थे। इसके बाद भाजपा ने जोशी को राज्यसभा में भेजा।

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2002 में जब उमा भारती ने भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने से इनकार कर दिया तो अंदरूनी कलह से जूझ रही पार्टी को बचाने के लिए कैलाश ने जिम्मेदारी संभाली थी। 2004 में उन्होंने भोपाल से लोकसभा चुनाव में जीत हासिल की और ये जीत 2014 तक बरकरार रही। 2014 में जोशी ने आडवाणी को भोपाल से लड़ने का आमंत्रण दिया था। आडवाणी को गांधीनगर (गुजरात) से लड़े, लेकिन जोशी को टिकट नहीं मिला था।

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