Tribal Holi Festival Celebration: बस्तर। छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के आदिवासी संस्कृति में प्राचीन त्योहारों को मनाने का तरीका भी अनोखा है फिर वह दशहरा हो या फिर होली का त्यौहार। माना जाता है कि बस्तर में होलिका दहन और होली का त्यौहार मनाने की परंपरा 1410 में शुरू हुई थी। इन परंपराओं को निभाने में बस्तर आज भी वैसा ही है और आज भी बस्तर संभाग की सबसे पहली होली जगदलपुर से 13 किलोमीटर दूर ग्राम माडपाल में जलाई जाती है।
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613 सालों से यह परंपरा राज परिवार आज भी निभा रहा है। बस्तर में प्रसिद्ध होलिका दहन और रंग खेलने की परंपरा अनूठे रीति-रिवाजों से जुड़ी हुई है इसमें होलिका दहन की शुरुआत बस्तर रियासत के कागदी राजा पुरुषोत्तम देव द्वारा शुरू की गई मानी जाती है। पूरी यात्रा से वापस लौटने के बाद होली का त्यौहार पड़ने पर बस्तर से 13 किलोमीटर दूर ग्राम माड़पाल में राज परिवार ने ग्रामीणों के साथ मिलकर पहली होली जलाई थी। तभी से यह परंपरा आज भी चली आ रही है। माड़पाल के साथ आस-पास के गांव में होलिका दहन 613 सालों से अधिक से भी हो रहा है। और बदस्तूर राजपरिवार बस्तर की पहली होली जलाकर होली के पर्व की शुरुआत करता है।
Tribal Holi Festival Celebration: हालांकि होली के त्यौहार मनाने की परंपरा कितनी पुरानी है इसको लेकर अलग-अलग मत भी हैं। नलवंश के पहले से ही बस्तर में मेले मडई के दौरान देवी देवताओं की पूजा पलाश के रंगों के जरिए होती थी। अभी भी फागुन मडई में देवी दंतेश्वरी, मावली माता को पलाश के फूलों से बने रंग लगाने के बाद ही होली का दहन और रंग गुलाल के खेल की शुरुआत होती है। लेकिन फिर भी यह माना जाता है। होली त्यौहार के तौर पर होलिका दहन की परंपरा काकतीय राजवंश ने शुरू की थी लेकिन होली के त्यौहार मनाने की परंपरा बस्तर के मेले मडई में अपने अलग तरीके से रीति रिवाज के साथ मौजूद थी। होली के त्यौहार की तैयारी पूरे धूमधाम के साथ बस्तर में फिर शुरू हो गई है।