Sachin Pilot News: हार और विवाद के साथ शैलजा की विदाई.. अब ‘पायलट’ सीट पर प्रदेश कांग्रेस, जानें क्या होगी चुनौती

चुनाव में चार मंत्रियों को छोड़ सभी नौ मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। पिछ्ला चुनाव हारने के पीछे प्रत्याशियों के चयन को भी माना जा रहा है।

Sachin Pilot News: हार और विवाद के साथ शैलजा की विदाई.. अब ‘पायलट’ सीट पर प्रदेश कांग्रेस, जानें क्या होगी चुनौती

Schin Pilot Chhattisgarh News

Modified Date: December 24, 2023 / 01:02 pm IST
Published Date: December 24, 2023 1:02 pm IST

रायपुर: पिछले साल छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस की प्रभारी बनाई गई महिला नेत्री कुमारी शैलजा की छत्तीसगढ़ से छुट्टी कर दी गई है। उन्हें फिलहाल उत्तराखंड की कमान सौंपी गई है। वही अब छत्तीसगढ़ की कमान राजस्थान के पूर्व उप मुख्यमंत्री और युवा नेता सचिन पायलट को सौंपी गई है। कुमारी शैलजा से पहले पीसीसी के प्रभारी रहे पीएल पुनिया ने कांग्रेस का राज्य से सत्ता का वनवास ख़त्म कराया था और सरकार में 15 सालो बाद वापसी कराई थी। हालाँकि उनकी विदाई भी विवादों में रही। उनपर राज्य में बड़े नेताओं के बीच गुटबाजी को हवा देने, टिकट के नाम पर पैसो की लेनदेन और सरकार व संगठन के बीच तालमेल नहीं बिठाने जैसे आरोपों के साथ कुमारी शैलजा को भी प्रदेश से रवाना होना पड़ा। अब सवाल उठता है कि सचिन पायलट क्या कमाल कर पाएंगे।

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ये होंगी चुनौतियां

सचिन पायलट के सामने सबसे बड़ी चुनौती नाराज नेताओं को मनाने की होगी। दरअसल पिछ्ले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने अपने 22 विधायकों की टिकट काट दी थी। कांग्रेस इस फैसले के साथ डैमेज कंट्रोल की दलील देती रही। लेकिन नतीजा इसके उलट रहा और इन 22 में से कांग्रेस महज 14 जगहों पर ही वापसी कर पाने में कामयाब रही। वही नतीजों के बाद जिन विधायकों के टिकट काटे गए थे उनका गुस्सा फूट पड़ा है। खासकर दो विधायक बृहस्पत सिंह और विनय जायसवाल अपनी टिकट काटने को लेकर मुखर है और लगातार बयानबाजी भी कर रहे है। कांग्रेस ने उन्हें बाहर का रास्ता भी दिखा दिया है। ऐसे में अब पायलट के सामने नाराज नेताओं को मना पाने की बड़ी चुनौती होगी ताकि लोकसभा चुनाव में संभावित नुकसान को कम से कम किया जा सके।

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गुटबाजी को कम करना उनकी बड़ी चुनौती होगी। दरअसल कई मौकों पर देखा गया था कि पूर्व सीएम और पूर्व उप मुख्यमंत्री के बीच तालमेल की बड़ी कमी थी। भूपेश बघेल ने भले ही टीएस सिंहदेव के खिलाफ सार्वजानिक तौर पर बयानबाजी नहीं की थी लेकिन टीएस सिंहदेव ने अपने कई फैसलों से जाता दिया था कि वह सरकार से खुश नहीं है। यहाँ तक कि सिंहदेव ने नाराजगी में पंचायत विभाग भी छोड़ दिया था। इसके साथ ही ढाई-ढाई साल सीएम के फार्मूले को लेकर भी खींचतान देखी गई थी। आखिरी साल में सिंहदेव को डिप्टी सीएम का पद देकर संतुष्ट करने की भी कोशिश हुई बावजूद छोटे कार्यकर्ता भी दो गुटों में साफतौर पर बंटे नजर आएं। पूर्व विधायक बृहस्पत सिंह ने सिंहदेव पर भाजपा से मिले होने जैसे आरोप भी लगाएं। इस तरह पायलट के सामने प्रदेश नेतृत्व के बीच तालमेल बिठाने की भी बड़ी चुनौती होगी।

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नए प्रभारी के सामने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के खोये जनाधार को हासिल करने की चुनौती होगी। इसके लिए सबसे जरूरी उम्मीदवारों का चयन होगा। चुनाव में चार मंत्रियों को छोड़ सभी नौ मंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाए थे। पिछ्ला चुनाव हारने के पीछे प्रत्याशियों के चयन को भी माना जा रहा है। कांग्रेस पर आरोप लगे है कि जिनके टिकट काटे जाने चाहिए थे उलटे उन्हें ही मौका दिया गया। इस तरह निर्वाचन क्षेत्रों में उम्मीदवार को लेकर भी मतदाता प्रभावित हुए। ऐसे में पीसीसी इंचार्ज सचिन पायलट के सामने लोकसभा चुनाव के लिए साफ और बेदाग़ छवि के नेताओ को उम्मीदवार बनाने की बड़ी चुनौती होगी।

कांग्रेस के लिए प्रदेश में बड़ी चुनौती संसाधन जुटाने की होगी। पार्टी के पास इसके लिए छह महीने से भी कम वक़्त शेष है। ऐसे में उन्हें लोकसभा चुनाव की तैयारियों के लिए संसाधन की जरूरत होगी। पांच साल सरकार में रही कांग्रेस ने अपने संगठन को जरूर मजबूत किया है ऐसे में देखना दिलचस्प होगा की पार्टी कितनी तैयारी के साथ भाजपा का मुकाबला कर पाती है।

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