Raigarh Hindi News 2022: जिले में भगवान के नाम पर करोडों रुपए की मुआवजा राशि का प्रकरण तैयार किया गया है। मुआवजा देने के लिए प्रशासन भगवान को ढूंढ रहा है। लेकिन भगवान हैं कि मिल ही नहीं रहे हैं। जानकर हैरत होगी लेकिन ये हकीकत है। जिले में भगवान के नाम पर 3 करोड़ से अधिक का मुआवजा जिला प्रशासन के सरकारी कोष में जमा है। कोई वारिस नहीं होने की वजह से न तो इस राशि का भुगतान हो रहा है न ही किसी अन्य प्रयोजन में खर्च हो रहा है। जानकारों का कहना है कि मंदिरों की समिति या ट्रस्ट न होने की वजह से इस राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है और राशि कलेक्टर के सरकारी कोष में जमा है। इसके लिए राज्य शासन से मार्गदर्शन मांगकर बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए ताकि राशि संबंधित गांव में सार्वजनिक कार्य में खर्च की जा सके। जबकि एडीएम का कहना है कि अगर मंदिर की समिति नहीं है तो कलेक्टर ही प्रबंधक होंगे। वहीं इस राशि को खर्च कर सकते हैं।
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रायगढ़ जिले में पिछले कुछ सालों में कई सरकारी गैर सरकारी परियोजनाएं आई जिसके लिए जमीनों का अधिग्रहण हुआ। एनटीपीसी पावर प्लांट, केलो परियोजना जैसे बड़े प्रोजेक्ट में तो गांव के गांव विस्थापित हो गए। विस्थापन की इस कार्रवाई के दौरान लोगों को जमीन मकान के बदले मुआवजा दिया गया। लेकिन मंदिरों के मुआवजे को लेकर असमंजस की स्थिति रही। ऐसा इसलिए क्योंकि कई गावों में मंदिरों का निर्माण किया गया था लेकिन मंदिर की कोई समिति या फिर ट्रस्ट नहीं था। अब जब मंदिर के जमीन भूअधिग्रहण में आई तो मुआवजे का प्रकरण किसके नाम पर तैयार करें इसे लेकर असमंजस की स्थिति रही। नतीजन जिला प्रशासन ने संबंधित मंदिर के नाम पर मुआवजा पत्रक तैयार किया। लेकिन अब मुआवजा राशि के भुगतान में दिक्कतें आ रही हैं।
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प्रकरणों पर गौर करें तो आठ गावों में तकरीबन 3 करोड़ की मुआवजा राशि भगवान के नाम पर तैयार की गई है। जिन गावों की राशि लंबित हैं उसमें ग्राम कोसमपाली में 28.84 लाख, खैरपाली में 63.488 लाख, केनसरा में 8.48 लाख, कोतासुरा में 85.284 लाख, सूपा में 42.48 लाख, धनगांव में 1.98 लाख बड़े भंड़ार में 8.47 लाख और कुकुर्दा मे 32.7 लाख का प्रकरण शामिल हैं। इसमें भगवान जगन्नाथ का नाम ही सबसे अधिक है जबकि दो शिव मंदिर भी हैं। जानकारों का कहना है कि मंदिरों की समिति या ट्रस्ट न होने की वजह से इस राशि का भुगतान नहीं हो पा रहा है और राशि कलेक्टर के सरकारी कोष में जमा है। इसके लिए राज्य शासन से मार्गदर्शन मांगकर बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए ताकि राशि संबंधित गांव में सार्वजनिक प्रयोजन में खर्च की जा सके।
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इधर मामले में अधिकारी नियमों का हवाला देकर मामले से पल्ला झाड़ रहे हैं। मामले में एडीएम का कहना है कि अगर समिति या ट्रस्ट है तो मंदिर की राशि का भुगतान किया जा सकता है लेकिन समिति नहीं होने पर मंदिर या भगवान के नाम से मुआवजा प्रकरण तैयार किया जाता है। अगर मंदिर की समिति नहीं है तो कलेक्टर ही प्रबंधक होंगे। लिहाजा वे इस राशि को खर्च कर सकते हैं।
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