चंडीगढ़, 15 मई (भाषा) शिरोमणि अकाली दल (शिअद) प्रमुख सुखबीर सिंह बादल ने गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के केंद्र के फैसले की रविवार को आलोचना करते हुए कहा कि इस कदम से गेहूं के फसल की मांग में गिरावट आएगी और किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
बादल ने गर्मी की जल्दी शुरुआत होने के कारण उपज में गिरावट और अनाज के सूखने की वजह से किसानों के गेहूं के लिए प्रति क्विंटल 500 रुपये की भी मांग की।
उल्लेखनीय है कि भीषण गर्मी की चपेट में आने से गेहूं का उत्पादन प्रभावित होने को लेकर चिंता के बीच केंद्र सरकार ने ऊंची कीमतों पर लगाम लगाने के लिए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है।
केंद्र ने कहा है कि पड़ोसी और कमजोर देशों की खाद्यान्न आवश्यकता को पूरा करने के अलावा, इस फैसले से गेहूं और आटे की खुदरा कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी, जो पिछले एक साल में औसतन 14-20 प्रतिशत बढ़ी है।
बादल ने मांग की कि किसानों की उपज की मांग में कृत्रिम रूप से निर्मित गिरावट को रोकने के लिए निर्यात प्रतिबंध तुरंत हटा दिया जाए।
उन्होंने यहां एक बयान में कहा, ‘‘मांग में गिरावट का पूरी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक चक्रीय प्रभाव पड़ेगा। किसान और खेतों में काम करने वाले मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, हालांकि इससे कोई भी आर्थिक वर्ग या समाज का कोई भी वर्ग इसके नकारात्मक अल्पकालिक और दीर्घकालिक परिणामों से नहीं बच पाएगा।’’
उन्होंने कहा कि निर्यात प्रतिबंध को वापस लेना अब और अधिक आवश्यक हो गया है क्योंकि विशेष रूप से पंजाब में किसानों को मौसम में अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव के कारण अनुमानित 33 प्रतिशत कम गेहूं की उपज के कारण भारी और असहनीय झटका लगा है।
शिअद प्रमुख ने कहा कि सरकार को उद्योग और कृषि में उत्पादकता और उत्पादन में गिरावट के संबंध में समान मानकों को लागू करना चाहिए और समान नीतियां अपनानी चाहिए।
इस्पात उत्पादन में गिरावट का उदाहरण देते हुए बादल ने कहा कि इसके परिणामस्वरूप इस्पात की कीमतें आसमान छू रही हैं लेकिन इस्पात के निर्यात पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘इसके विपरीत, जब भी व्यापार और उद्योग में कम उत्पादकता की समान स्थिति उत्पन्न होती है, तो सरकार हमेशा उदार सब्सिडी और बड़े औद्योगिक या कॉरपोरेट घरानों को ऋण माफी के माध्यम से उत्पादकों या निर्माताओं की सहायता के लिए सामने आती है।’’
बादल ने सवाल किया, ‘‘यह पैमाना उन किसानों पर क्यों लागू नहीं होना चाहिए जो अर्थव्यवस्था की असली रीढ़ हैं और देश के कमाने वाले हैं।’’ उन्होंने सूखे गेहूं के दाने के लिए मानदंडों में छूट देने के केंद्र के फैसले को ‘‘अपर्याप्त’’ बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘कुल उत्पादन में 33 प्रतिशत की गिरावट के खिलाफ, गेहूं के कुम्हलाए दानों के लिए महज 12 प्रतिशत की बढ़ी हुई छूट केवल एक दिखावा है। छूट में केवल कुम्हलाया अनाज शामिल है, जबकि उपज में गिरावट पूरे उत्पादन को प्रभावित करती है।’’
बादल ने कहा, ‘‘किसानों को हुए वास्तविक नुकसान से ध्यान भटकाने के लिए यह एक चतुर चाल है।’’ केंद्र ने बिना किसी मूल्य कटौती के छह प्रतिशत की मौजूदा सीमा के मुकाबले 18 प्रतिशत तक के मानदंडों में ढील दी है।
भाषा सुरभि सुभाष
सुभाष
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