यौन अपराध पर कानून महिला केंद्रित, लेकिन साक्ष्य का भार पीड़िता और आरोपी दोनों पर: उच्च न्यायालय |

यौन अपराध पर कानून महिला केंद्रित, लेकिन साक्ष्य का भार पीड़िता और आरोपी दोनों पर: उच्च न्यायालय

यौन अपराध पर कानून महिला केंद्रित, लेकिन साक्ष्य का भार पीड़िता और आरोपी दोनों पर: उच्च न्यायालय

:   Modified Date:  June 13, 2024 / 11:36 PM IST, Published Date : June 13, 2024/11:36 pm IST

प्रयागराज, 13 जून (भाषा) विवाह का झांसा देकर दुष्कर्म करने के आरोपी एक व्यक्ति को बरी करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन अपराध पर कानून सही मायने में महिला केंद्रित है, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि पुरुष साथी हमेशा गलत होता है।

यह निर्णय देते हुए न्यायमूर्ति राहुल चतुर्वेदी और न्यायमूर्ति नंद प्रभा शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में साक्ष्य का भार महिला शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों पर होता है।

खंडपीठ ने कहा, “निःसंदेह अध्याय 16 “यौन अपराध” एक महिला केंद्रित अधिनियम है जो एक महिला या लड़की की गरिमा और सम्मान की रक्षा करने के लिए है, लेकिन परिस्थितियों का आकलन करने पर ऐसा नहीं है कि हर बार पुरुष साथी गलत होता है।”

उच्च न्यायालय दुष्कर्म के मामले में आरोपी को अधीनस्थ अदालत द्वारा बरी किए जाने के खिलाफ शिकायतकर्ता की अपील पर सुनवाई कर रहा था। आरोपी के खिलाफ अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति अत्याचार रोकथाम अधिनियम, 1989 के तहत भी आरोप पत्र दाखिल किया गया था।

यह मामला 2019 का है जब पीड़िता ने प्रयागराज के कर्नलगंज थाने में शिकायत की कि आरोपी व्यक्ति ने शादी का वादा कर उसके साथ शारीरिक संबंध स्थापित किए, लेकिन बाद में वह शादी से मुकर गया। महिला का यह दावा भी है कि आरोपी व्यक्ति ने उसकी जाति को लेकर गाली-गलौज की।

इस मामले में जांच के बाद 2020 में आरोप पत्र दाखिल किया गया। अधीनस्थ अदालत ने आठ फरवरी, 2024 को आरोपी को दुष्कर्म के आरोप से बरी कर दिया, लेकिन भादंसं की धारा 323 (जानबूझकर आहत करना) के तहत उसे दोषी ठहराया। इसके बाद, महिला ने निचली अदालत के निर्णय के खिलाफ उच्च न्यायालय में आपराधिक अपील दायर की।

आरोपी व्यक्ति ने अदालत को बताया कि उसने महिला की सहमति से शारीरिक संबंध स्थापित किए और उसे जब पता चला कि महिला की वास्तविक जाति “यादव” नहीं है जैसा कि महिला ने बताया था, तो उसने शादी से इनकार कर दिया।

तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए उच्च न्यायालय ने पाया कि शिकायतकर्ता ने 2010 में एक व्यक्ति से शादी की थी, लेकिन शादी के दो साल बाद ही वह अलग रहने लगी। उच्च न्यायालय ने पाया कि महिला ने अपनी पूर्व की शादी के बारे में तथ्य से इनकार किया था।

उच्च न्यायालय निचली अदालत के निर्णय को सही ठहराते हुए कहा, “एक महिला जो पहले से शादीशुदा है और पहले पति से तलाक लिए बगैर उसने पांच वर्षों तक बिना किसी आपत्ति और बिना किसी हिचक के शारीरिक संबंध बनाए रखा। दोनों कई होटलों और लॉज में गए। यह निर्णय करना मुश्किल है कि कौन किसे बेवकूफ बना रहा है।”

भाषा राजेंद्र राजकुमार

राजकुमार

 

(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)