मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बोले- जंगलों से आय बढ़ेगी तो वनवासियों का जंगल से प्रेम और भी बढ़ेगा | CM Bhupesh says If the income from the forests then love of forest dwellers will increase even more

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बोले- जंगलों से आय बढ़ेगी तो वनवासियों का जंगल से प्रेम और भी बढ़ेगा

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बोले- जंगलों से आय बढ़ेगी तो वनवासियों का जंगल से प्रेम और भी बढ़ेगा

:   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:48 PM IST, Published Date : January 3, 2020/11:58 am IST

रायपुर। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि जंगलों में रहने वाले वनवासियों की जंगल से आय बढ़ेगी, तो उनका जंगलों के प्रति प्रेम और भी बढ़ेगा। आज हमें जंगलों को ऐसी फलदार प्रजातियों के वृक्ष और पौधे से समृद्ध करने की आवश्यकता है, जिनसे एक ओर वनवासियों की आय बढ़े और दूसरा वहां रहने वाले पशु पक्षियों की आवश्यकताएं पूरी हो सकें।

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उन्होंने कहा कि आदिवासी ही वनों के मालिक हैं, वन विभाग का काम वनों का प्रबंधन करना है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आज नवा रायपुर स्थित अरण्य भवन में ‘वन आधारित जलवायु सक्षम आजीविका की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव‘ विषय पर आयोजित एक दिवसीय परिचर्चा को संबोधित किया। आदिमजाति विकास मंत्री डॉ प्रेमसाय सिंह, मुख्यमंत्री के सलाहकार द्वय प्रदीप शर्मा और विनोद वर्मा, वन विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुवा, प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी सहित वन विभाग के अधिकारी, विषय विशेषज्ञ और ग्रामीण बड़ी संख्या में इस अवसर पर उपस्थित थे। परिचर्चा का आयोजन वन विभाग और ऑक्सफेम संस्था के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।

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मुख्यमंत्री ने कहा कि जंगलों को बचाने के लिए वनवासियों से ज्यादा पढ़े लिखे लोगों की जिम्मेदारी है। राज्य सरकार का फोकस इस बात पर होना चाहिए कि वनवासियों का जीवन कैसे सुखमय बन सके। जंगलों को बचाने के साथ-साथ वनवासियों की आय कैसे बढ़ाई जा सके इस पर ध्यान देना होगा। इसके साथ ही लघु वनोपजों में वैल्यू एडिशन की दिशा में भी काम करना होगा। बघेल ने कहा कि आज प्रदेश के ऐसे जिलों में जहां जंगल ज्यादा है, वहां सिंचाई का प्रतिशत शून्य से लेकर 5 प्रतिशत तक है। सिंचाई की सुविधा नहीं होने से यदि बारिश नहीं होती है तो फसल तो बर्बाद होती है, साथ ही वहां जल स्तर भी कम होता है। यदि फरवरी माह में हम नगरी क्षेत्र के जंगलों में जाते हैं तो अधिकांश वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं इसका सबसे बड़ा कारण जंगलों में गिरता जल स्तर है।

उन्होंने कहा कि जंगली क्षेत्रों के विकास के लिए वन अधिनियम और पर्यावरण अधिनियम के क्रियान्वयन के प्रति हमें व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना होगा। वहां कम से कम सिंचाई परियोजनाओं की अनुमति दी जानी चाहिए, जिससे वहां बांध बन सकें, बैराज और एनीकट बन सके। सिंचाई नहरों से जब पानी गांव में ले जाया जाता है, तो उस पूरे क्षेत्र में जल स्तर बना रहता है। इसका प्रभाव वनस्पतियों पर भी पड़ता है।

आज हम ग्लोबल वार्मिंग पर बड़ी चिंता करते हैं लेकिन जंगलों में गिरते जल स्तर से होने वाले दुष्प्रभावों को लेकर हम चिंतित नहीं है। उन्होंने कहा कि जल स्तर को मेंटेन करने के लिए जल संरक्षण के कार्य भी करना होगा, इसमें राज्य सरकार का नरवा प्रोजेक्ट काफी सहायक हो सकता है। इस प्रोजेक्ट में नदी नालों को वैज्ञानिक तरीके से चार्ज किया जाएगा। जिसमें सेटेलाइट के माध्यम से उपलब्ध नक्शों का उपयोग किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज राज्य सरकार आदिवासियों और वनवासियों को उनके अधिकार देने के लिए तत्पर है, एनजीओ को भी इस कार्य में राज्य सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकार सहयोग करना चाहिए।

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बघेल ने कहा की राज्य सरकार ने वनवासियों को व्यक्तिगत और समुदायिक वन अधिकार पट्टे देने की शुरुआत की है। इसमें कुछ समय के लिए अवरोध उत्पन्न हो गया। उन्होंने कहा कि कोंडागांव जिले के 9 गांवों में 8000 एकड़ में और धमतरी जिले के जबर्रा गांव में 12500 एकड़ में सामुदायिक वन अधिकार पट्टा दिया गया है। उन्होंने कहा कि जंगल आज असंतुलित विदोहन की वजह से वनवासियों की जरूरत पूरी नहीं कर पा रहे हैं।

अब तो हाथी, शेर और बंदर जैसे वन्य प्राणी जंगल छोड़कर शहरों की ओर जा रहे हैं। इससे बचने के लिए जंगलों को फिर से समृद्ध बनाना होगा, जिससे पशु-पक्षी और वनवासियों की हर जरूरत जंगलों से पूरी हो सके। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में 44 प्रतिशत भू-भाग में वन है, जो पूरे देश के जंगलों का 12 प्रतिशत हिस्सा है। छत्तीसगढ़ पूरे देश को ऑक्सीजन दे रहा है, लेकिन बदले में यहां के आदिवासियों को गरीबी और अशिक्षा का दंश मिल रहा है।

मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रदीप शर्मा ने परिचर्चा में नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के महत्व की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बस्तर क्षेत्र में वनवासियों की 52 प्रतिशत आजीविका वनों पर आधारित है। जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली असमय वर्षा से वनोपजों के फ्लावरिंग के पैटर्न में परिवर्तन होता है, जिससे उनकी उत्पादकता प्रभावित होने से उत्पादन कम होता है, इससे वनवासियों की आय भी कम होती है।

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वन विभाग के प्रमुख सचिव मनोज कुमार पिंगुआ ने कहा वन अधिकार कानून को लेकर अलग-अलग विभागों का अलग अलग नजरिया है, लेकिन सबका उद्देश्य वनवासियों की समृद्धि से है। उन्होंने कहा कि परंपरागत वन के निवासियों का पूरा जीवन और उनकी संस्कृति वनों पर ही आधारित है। वे वनों से जितना लेते थे, उससे ज्यादा देते थे, पेड़ों को नहीं काटते, फल-फूल और वनोपज कब तोड़ना है, इसका ध्यान रखते हैं।

नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी योजना के माध्यम से परंपरागत व्यवस्था को संरक्षित किया जा सकता है। इससे आने वाले समय में हमें फायदा होगा। उन्होंने जल और भूमि संरक्षण, वनों के समुचित दोहन और वनोपजों की प्रोसेसिंग पर ध्यान देने की जरूरत बतायी।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी ने कहा कि आदिकाल से मानव का प्रकृति के साथ सहअस्तित्व है। संयुक्त प्रबंध समितियों के माध्यम से वनों के संरक्षण और उनके प्रबंधन में वनवासियों की सहभागिता और वनों से होने वाली आय से उन्हें लाभान्वित करने की दिशा में कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वन अधिकार कानून लागू होने के बाद हमारा पूरा फोकस व्यक्तिगत वन पट्टे देने पर था, सामुदायिक अधिकार पत्रों का कार्य उपेक्षित ही रह गया जबकि सर्वाधिक यह महत्वपूर्ण है।

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