रायपुर: IBC24 सोमवार को एक कॉन्क्लेव का आयोजन कर रहा है। इसमें छत्तीसगढ़ के गुहमंत्री एवं धर्मस्व ताम्रध्वज साहू का स्वागत IBC24 के चेयरमैन सुरेश गोयल ने किया। गृहमंत्री साहू ने इस दौरान मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि सबसे पहले छत्तीसगढ़ी में प्रश्न करने के लिए आईबीसी का धन्यवाद। हमारी सरकार और हमारे सीएम का मानाना है कि यहां छत्तीसगढ़ी में कामकाज होना चाहिए। 15 साल तक जब हम विपक्ष में बैठे तो ये सोचते थे कि छत्तीसगढ़ राज्य जब अलग हो गया तो काम यहां के लोगों के हिसाब से होना चाहिए।
15 साल में छत्तीसगढ़ के विकास को लेकर उन्होंने कहा कि हम ये नहीं कहते कि पिछली सरकार ने इन 15 सालों में कुछ नहीं किया। लेकिन उन्होंने छत्तीसगढ़ की जनता के हिसाब से काम नहीं किया। हमारी सरकार का ये स्पष्ट मानना है कि हम सिर्फ और सिर्फ छत्तीसगढ़ की जनता के हिसाब से काम करेंगे। छत्तीसगढ़ की अधोसंरचना का लेकर उन्होंने कहा कि मैने पहले ही कहा है कि हमारी सरकार की स्पष्ट सोच है कि यदि हम गांव का विकास नहीं करेंगे तो हम पीछे रह जाएंगे। शहरों का ही विकास करना हमारी सरकार का उद्देश्य नहीं है।
नक्सल क्षेत्रों के विकास को लेकर उन्होंने कहा कि हम पहले यहां रहने वाले आदिवासियों को जागरूक करने की कोशिश करेंगे, ताकि वे सरकार की योजनाओं को समझें और मुख्यधारा से जुड़ें। हमारी सरकार का एक ही उद्देश्य है, विकास का कार्य सिर्फ छत्तीसगढ़िया लोगों के हिसाब से होगा। बस्तर के वनांचल क्षेत्र में बच्चों की पढ़ाई को लेकर उन्होंने कहा कि यहां के बच्चों की पढ़ाई डिस्टर्ब न हो, इसलिए हमारी सरकार उनके लिए शहरो में पढ़ाने की व्यवस्था बना रही है। रायपुर, भिलाई और हो सके तो कोई बच्चा अगर दिल्ली में पढ़ना चाहता है तो उसे दिल्ली में भी पढ़ाया जाएगा।
सड़कों के विकास को लेकर उन्होंने कहा कि हमारी सरकार दिखाने के लिए कोई भी काम नहीं करेगी। जहां हमारी सरकार को लगेगा कि यहां जनता को सुविधा देना चाहिए तो हम उस क्षेत्र में काम करेंगे। ट्रैफिक नियमों को लेकर उन्होंने कहा कि कानून तो कई हैं लेकिन कुछ नियम जनता के लिए तकलीफदायक होते हैं। लेकिन नियमों को लागू नहीं करना भी जनता के लिए ही हानिकारक होगा। जनता को जागरूक करने के लिए एनजीओ का सहारा लेना होेगा। जब तक जनता जागरूक नहीं होंगी तक तक नियमों का उल्लंघलन होगा। वहीं, नियमों का लेकर उन्होंने कहा कि हमें भी सिगनल पर जनता के साथ रुकना होगा तभी जनता को नियमों के पालन के लिए प्रेरित किया जा सकेगा।
प्रदेश की जनता में जागरुकता लाने के लिए उन्होंने कहा कि सख्ती बरतने से लोग जागरूक नहीं होंगे। इसके लिए स्कूल में शिक्षा दिया जाना आवश्यक है। पहली क्लास से ही बच्चों को अनुशासन की शिक्षा देनी होगी, साथ ही पालकों को भी बच्चों को जागरूक करने के लिए आगे आना होगा। गांवों में स्कूल की स्थिति को लेकर उन्होंने कहा कि प्रदेश में स्कूलों की स्थिति अभी अच्छी है। शाला के साथ ही भवन का भी बजट में प्रावधान होता है। दर्ज संख्या के बढ़ने के साथ ही स्कूल भवन की व्यवस्था की जाती है।
छत्तीसगढ़ के पर्यटन को लेकर उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ समृद्ध हैं और इसे यह बहुत आगे ले जाया जा सकता है। सीएम भूपेश बघेल को इस बात के लिए धन्यवाद देता हूं कि मुझे इस विभाग को दिया। पर्यटन के क्ष्रेत्र में प्रदेश में बहुत काम करना होगा, जिससे देश में अलग ही पहचान बनेगी, जीरो से काम करना होगा। सरकार बनने के बाद पर्यटन को आगे ले जाने के लिए कार्य योजना बनाई जा चुकी है। इसके लिए हम आगे काम करेंगे। अविकसित पर्यटन क्षेत्रों के लिए उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों को विकसित करने के लिए पहले सर्वे कर कार्य योजना बनाई जाएगी, उसके बाद ही इन स्थानों का विकास किया जा सकेगा।
पुन्नी मेला का नाम बदलने का लेकर उन्होंने कहा कि इसमें रजनीतिक द्वंद्व नहीं है। मै आपको बता दूं जब मै छोटा था तब से जानता हूं कि राजिम मेला शुरु से ही राजिम माघी पुन्नी मेला के नाम से ही जाना जाता था। बता दूं आपको अंग्रेजों के गजेटियर में भी इसका यही नाम उल्लेख है। साथ ही यह भी उल्लेख किया गया है कि यहां 110 साल पहले भी 50,000 लोग आते थे।
राज्योत्सव और पुन्नी मेला में कलाकारों को बुलाने को लेकर उन्होंने कहा कि इन आयोजनों में ऐसा नहीे है कि हम बाहर के कलाकारों को नहीं बुलाएंगे। जब छत्तीसगढ़ के कलाकार दूसरे राज्यों में जाकर प्रस्तूति दे सकते हैं, तो दूसरे राज्य के कलाकार हमारे राज्य में क्यों नहीं आ सकते। हां, लेकिन छत्तीसगढ़ के कलाकारों का प्राथमिकता दी जाएगी। पुन्नी मेला में हर बार एक ही मंच बनाया जाता था, जिसमें सभी प्रकार के लोग जैसे राजनीतिक, संत और कई प्रकार के लोग बैठते थे। लेकिन इस बार अलग_अलग 4 मंच बनाए गए थे, जिसमें एक में सिर्फ नाचा का मंचन हो रहा था। बता दूं कि नाचा छत्तीसगढ़ में विलुप्त होने के कगार पर है। वहीं, हमने पुराने छत्सतीसगढ़ी खेलों का भी आयोजन किया था जैसे, तिरी-पासा, बांटी, भौरा और बिल्लस।